मोदीजी के स्वागत में ब्रिटेन वेम्बले स्टेडियम
में आयोजित इवेंट का रंगारंग कार्यक्रम थोड़ी देर के लिए देखा। मैंने
इस कार्यक्रम का वीडियो धुले से देखा, धुले,
वही जहाँ कभी कभी एक ब्लॉग पोस्ट टाइप करते करते ४-५ बार बिजली जाती
है। जहाँ कभी कभी एक १०० अक्षरों का छोटासा ट्वीट भेजने में ५ मिनट लग
जाते हैं।
भारतीय मीडिया का उत्साह, जनता
में जोश, ब्रिटेन के भारतीय मूल के लोगों में उत्साह ये भी
इस कार्यक्रम के दौरान देखा। मेरे मन में एक प्रश्न आया, हमें
रंगारंग कार्यक्रम इतने अच्छे क्यों लगते हैं?
हमारी फिल्मों से लेकर अब प्रधानमंत्री के विदेश
दौरों तक। रंगारंग कार्यक्रम, नाच, गाना
बस..दिल झूम उठता है। क्या ये सब प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए
वास्तव में इतना जरूरी है? क्या भारत में सब लोग इतने ज्यादा खुश हैं?
क्या किसी भी राष्ट्रप्रमुख का कीमती समय हर
विदेश दौरे में उनके स्वागत में
गाने, नृत्य इन सबके लिए खर्च करना उचित है? क्या
समर्थक अपने ही नेता का समय बर्बाद नहीं करते, इस तरह के
आयोजनों से? क्या समर्थक अपने ही नेता की प्रतिमा को
रंगारंग कार्यक्रमों से बहुत ही छोटा नहीं बना रहे हैं?
बहुत ही प्राथमिक स्तर की बात है कि
राष्ट्रप्रमुख ऐसे निर्णय ले सकते हैं जिससे तुरंत बदलाव लाया जाए और समस्याएँ
सुलझाई जाए इसलिए उनका एक-एक मिनट कीमती होता है। बार-बार के
रंगारंग कार्यक्रमों का दृश्य जनता के लिए बहुत आश्वासक नहीं है।ब्रिटेन के भारतीय
बंधू भी अगर कुछ संवेदनाएं भारत के आत्महत्या करते किसानों के प्रति, यहाँ
की समस्याओं के प्रति दिखाते तो वह कितना अच्छा लगता। आंतरराष्ट्रीय
समाचारपत्रों में इन रंगारंग कार्यक्रमों की आलोचना हुई तो उसमें आश्चर्य ही क्या
है? विदेशों में बसे भारतीय मूल के नागरिकों को संबोधित करना समझ में आता
है, लेकिन रंगारंग कार्यक्रम? भारतीय
ग्रामीण नागरिकों को पूछना चाहिए कि क्या इन कार्यक्रमों से उनकी जिन्दगी में कोई
बदलाव आएगा।
भारत में ये व्यक्तिपूजा इतनी हद से ज्यादा क्यों है? कलाकार, खिलाडी इनके प्रति दीवानगी एक हद तक समझ
में आती है, लेकिन इतनी ज्यादा? कल पैरिस पर
आतंकवादी हमले के बाद सारी दुनिया में उसीकी चर्चा थी, पर भारत में
क्रिकेट, फ़िल्में और बिग बॉस की ख़बरें भी चर्चा में थी। एक
दिन के लिए भी हम ये रोक नहीं सके।
छोटेसे पंचायत चुनावों की जीत से लेकर लोकसभा के
चुनावों तक जीत के जश्न मनाने का प्रचलन भी दिखता है, ये
सब क्यों? चुनाव की जीत जनता ने दी जिम्मेदारी होती है, तुरंत
काम आरम्भ करना और विरोधियों की जिन गलतियों को प्रचार में जोरो शोरों से बताया
जाता है, उनको सुधारना ये पहला काम होना चाहिए। अपने
चुनावी वादों को पूरा करने की तरफ ध्यान देना चाहिए या जश्न मनाना उचित है?
प्रधानमंत्री के स्वागत में 'बचना
ऐ हसीनों' गाने की आवश्यकता क्या हो सकती है?