चैतन्यपूजा के सभी दोस्तों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। दीपावली का त्यौहार आप सबके जीवन में प्रेम, ज्ञान और समृद्धि का प्रकाश लाएं सौहार्द का उजियारा दिवाली का साथ फैले।
प्रकाश की खुशियाँ
पटाखों में क्यों जलानी?
प्यार की दुनिया
धुंए से कैसे बसानी?
पागलपन शोर करने का
पागलपन धुँआ उड़ाने का
रोक नहीं सकते पागलपन अविवेक का
मूक जानवर भयभीत हो
कुदरत का नुकसान हो
पटाखों से आग लगे
दुकानें जल जाए
या लोग जल जाए
रोक नहीं सकते पागलपन अविवेक का
भारतीय संस्कृति इतनी कमजोर कबसे हो गई कि पटाखें न जलाए तो धर्म समाप्त हो जाएगा? पटाखें जलाने से ही क्या धर्म मजबूत हो जाएगा?
मुझे ये याद नहीं कि अब कितने साल हो गए पटाखों को जिन्दगी से दूर करके। पर हर दिवाली में दोस्तों की शुभकामनाएँ, रंगोली, कुछ नया मुश्किल पदार्थ बनाना सीखना और कभी उसका बिगड़ना और बिगड़ने के बाद भी कुछ न कुछ रास्ता निकालकर ठीक करना ये सब कभी न भूलनेवाले पल हैं। जहाँ प्यार और प्रकाश फैले वही तो धर्म है।
आइए दिवाली में एक दुसरे के हृदय में प्रेम के दीपक जलाते हैं..और प्रेम का ही प्रकाश फैलाते हैं।
दीपावली के पर्व पर कुछ पंक्तियाँ:
प्रकाश की खुशियाँ
पटाखों में क्यों जलानी?
प्यार की दुनिया
धुंए से कैसे बसानी?
पागलपन शोर करने का
पागलपन धुँआ उड़ाने का
रोक नहीं सकते पागलपन अविवेक का
मूक जानवर भयभीत हो
कुदरत का नुकसान हो
पटाखों से आग लगे
दुकानें जल जाए
या लोग जल जाए
रोक नहीं सकते पागलपन अविवेक का
पटाखों को धर्म से जोड़ना वैचारिक प्रदूषण:
पिछले कुछ वर्षों से पटाखों का विरोध - धर्म के विरोध के तौर पर देखा जाने लगा है इसमें क्या धार्मिक परम्परा है, यह समझना मुश्किल है हर दिवाली पटाखों के कारण हादसों के समाचार आते हैं, कहीं फैक्टरी में आग लग जाती है, कहीं पटाखों की दुकानों में आग लग जाती है, लोग खुद भी जल जाते हैं। जहाँ ऐसे हादसे होते हैं, उनके घर तो दिवाली के प्रकाश से अँधेरे में बदलते हैं। ऐसे में, पटाखें लगाने में, इतना धुआ करने में कौनसी ख़ुशी है? अभी जब मैं ये पोस्ट लिख रही हूँ, पटाखों का शोर चल ही रहा है। इस तरह के शोर से, जिससे लोगों की धडकनें तेज होती है, किसी की सुनने की क्षमता भी जा सकती है, किस तरह की ख़ुशी मिलती है? बिल्लियों के छोटे छोटे बच्चे तो पटाखों की आवाज से बहुत डर जाते हैं, क्योंकी वे समझ नहीं पाते कि ये क्या हो रहा है। ज्यादा से ज्यादा क्षमता के पटाखें लगाने में बहुत साहस भी समझा जाता है, लोग तो रास्ते पर खड़े रहकर पटाखे जलाते हैं, आने जानेवाले जान बचाकर जाए या एक तरफ खड़े रहे, उनको कोई फर्क नहीं पड़ता।भारतीय संस्कृति इतनी कमजोर कबसे हो गई कि पटाखें न जलाए तो धर्म समाप्त हो जाएगा? पटाखें जलाने से ही क्या धर्म मजबूत हो जाएगा?
दिवाली में प्यार के दिये जलाएं।
एक दिये के साथ प्रकाश की ज्योति जब दूसरे दिये को प्रकाशित करती है वो क्षण कितना सुन्दर होता है। जब सारे दीपक जगमगाने लगते हैं तो मन कितना प्रसन्न होता है। दिवाली में खुद अपने हाथ से अपनों के लिए कुछ विशेष मिठाइयाँ बनाने की ख़ुशी कितनी बड़ी होती है एक दुसरे से मिलना, खुशियाँ बांटना, शुभकामनाएं देना ये पल अनमोल होते हैं। ये सालभर ख़ुशी के खजाने बनकर दिल में रहते हैं। छोटेसे प्यारे से दियों के साथ प्रकाश फैलता है और ह्रदय में प्रकाश प्रेम से फैलता है।मुझे ये याद नहीं कि अब कितने साल हो गए पटाखों को जिन्दगी से दूर करके। पर हर दिवाली में दोस्तों की शुभकामनाएँ, रंगोली, कुछ नया मुश्किल पदार्थ बनाना सीखना और कभी उसका बिगड़ना और बिगड़ने के बाद भी कुछ न कुछ रास्ता निकालकर ठीक करना ये सब कभी न भूलनेवाले पल हैं। जहाँ प्यार और प्रकाश फैले वही तो धर्म है।
आइए दिवाली में एक दुसरे के हृदय में प्रेम के दीपक जलाते हैं..और प्रेम का ही प्रकाश फैलाते हैं।