बीबीसी हिंदी रेडियो पर ‘अच्छी लडकी’ की परिभाषा क्या होनी चाहिए, इस विषय
पर शनिवार को चर्चा थी। मैंने ट्विटर पर अपना मत लिखा और उसीके साथ कुछ उत्स्फूर्त पंक्तियाँ मनमें आई, लेकिन ट्विटर पर लिखना संभव नहीं था। आजकी प्रस्तुति एक लडकी की पीड़ा पर।
कविता से पहले, महिलाओं की व्यथा पर चर्चा आरम्भ बीबीसी हिंदी के संपादकों और पूरी टीम का आभार।
कविता से पहले, महिलाओं की व्यथा पर चर्चा आरम्भ बीबीसी हिंदी के संपादकों और पूरी टीम का आभार।
लड़कियों की जिन्दगी अब बहुत आझाद हो गई है, ऐसा दृश्य दीखता है।लेकिन महिलाओं के निर्णय स्वातंत्र्य के मामले में लोगों की सोच उतनी आझाद नजर नहीं आती। ‘अच्छा’ शब्द से कोई ठोस अर्थ होता नहीं, इसलिए ‘अच्छी लडकी’ की परिभाषा करने के बहाने महिलाओं पर बहुत सारे बंधन थोपे जा सकते हैं; थोपे जाते हैं।
स्वयंघोषित संस्कृति के ठेकेदार भी संस्कृति के नाम पर अपनी ही वैचारिक मूर्खता और स्वार्थ के अनुसार लडकी के आदर्श की व्याख्या करते नजर आते हैं।
जहाँ तक मैंने पढ़ा है, सीता, अहल्या, तारा, मंदोदरी, द्रौपदी, कुंती ये सब बुद्धिमती थी और बहस करती थी, प्रश्न उठाती थी। पर संस्कृति के ठेकेदार धर्म का अर्थ अपने स्वार्थ के अनुसार प्रचारित करते हैं। इसलिए सहनशीलता, त्याग, पति की आज्ञा का पालन करना, बच्चों के लिए अपनी महत्वाकांक्षा का त्याग करना आदि आदर्श महिला के लिए आवश्यक गुण प्रचारित किए जा रहे हैं।
सावित्री इतनी बुद्धिमती थी कि उनके पिता को कहना पड़ा कि अपने लिए योग्य वर की खोज सावित्री स्वयं ही करें। पिताने अपने आपको इस काममें योग्य नहीं समझा। इस पहलु का प्रचार संस्कृति रक्षक क्यों नहीं करते?
संस्कृति के दुकानदारोंने 'अच्छी लडकी' की परिभाषा में एक और परीक्षा जोड़ दी है। अगर कोई ज्योतिषी बता दे कि लडकी अपशकुनी है, उसकी कुण्डली में कुछ दोष है, कुयोग है तो चाहे वो लडकी कितनी ही विदुषी क्यों न हो, यशस्वी क्यों न हो, उसे बेवजह की तीव्र नफरत का सामना करना पड़ता है, हो सकता है कि उसकी जिन्दगी इस कारण से बर्बाद हो जाए। समस्याएँ सबके जीवन में आती रहती हैं, लेकिन अपने कर्म और निर्णयों की ओर ध्यान देने के बजाय किसी भी समस्या का दोष अपशकुनी घोषित लडकी पर मढ़ा जाता है। ऐसी विकृत सोच पढ़े लिखे सधन वर्ग में दिखने लगी है। पर बाहर से ऊँचे औधे, ऊँची शिक्षा का मुखवटा होने के कारण ये गन्दगी स्पष्ट रूपसे नजर नहीं आती।
मैं सोचती हूँ, अगर लडकी को अच्छा बनना हो तो किस किस की परिभाषा के अनुसार उसे अपनी जिन्दगी को तबाह करना होगा? लडकी को इन्सान समझने के बजाए एक 'प्रॉपर्टी' के रूप में क्यों देखा जाता है?
आजकी कविता में एक लडकी की पीड़ा ...
अच्छी लडकी?
किस किस की नजरोंमें?
कौन हैं मालिक मेरा?
किसने तय किया, कौन है मालिक मेरा?
कौन है अच्छापन तय करनेवाला मेरा?
आप तय करेंगे?
मैं अच्छी हूँ या नहीं?
क्यों?
मेरा संघर्ष मैंने किया
मेरा दर्द मैंने सहा
रोज दर्द सहती हूँ...
मैं अच्छी हूँ या नहीं?
क्यों?
क्या आप अच्छे हैं?
आपने कभी अपने आपसे पूछा?
क्या मैंने आपसे पूछा?
क्या आपने कभी सोचा आप मेरी नजरमें अच्छे हैं या नहीं?
आपने नहीं सोचा...
ये अधिकार मैंने तो आपको नहीं दिया!
क्या आपको मेरी जिन्दगी जीनी है?
क्या आपने कभी मेरे सुख दुःख समझे हैं?
तो क्यों आप तय करेंगे मैं अच्छी हूँ या नहीं?
कैसे?
किसने दिया ये अधिकार आपको?
मैंने तो नहीं दिया था कभी!
आप....
आप सब
क्या आपने कभी लड़की को इन्सान समझा?
क्या आपने कभी लडकी को चैन से जीने दिया?
अपनी या किसी और की!
लडकी को क्या समाज ने चैन से जीने दिया?
क्या आपने कभी सोचा, आप लड़की से कैसा बर्ताव करते हैं?
आपने नहीं सोचा...
सवाल आपके बर्ताव का कभी उठा ही नहीं
आप क्यों तय करने बैठे मैं अच्छी हूँ या नहीं?
मेरा अस्तित्व मेरे संघर्ष से है
मेरा अस्तित्व मेरी अपनी जिन्दगी से है
अपने सपनों से, अपने इरादों से
मेरे अस्तित्व की परिभाषा मैं तय करती हूँ
लडकी को लेबल चिपकाने का अधिकार?
लडकी को कैरेक्टर सर्टिफिकेट देने का अधिकार?
किसने दिया आपको?
जन्मसे मेरे अस्तित्व पर प्रहार हुए
फिर भी
मैं हूँ
आपसे वो भी सहा नहीं जाता?
कपडे देखकर लेबल
शिक्षा देखकर लेबल
नौकरी देखकर लेबल
आप लगायेंगे?
क्योंकी आप अच्छे नहीं इसलिए आप लडकी की अच्छाई नापते हैं
क्योंकी आप अच्छे नहीं इसलिए आप उसपर शक करते हैं
उसके अस्तित्व से नफरत करते हैं
PS: सब लोग गलत ही होते हैं ऐसा मेरा कहने का उद्देश्य नहीं है, लेकिन लड़कियों के प्रति सामाजिक वैचारिक गन्दगी पर प्रहार करने के लिए ये कविता है।
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