आज नवरात्री उत्सव का पांचवा दिन है। आज की प्रार्थना विशेष रूप से
मेरे परिवार की कुलस्वामिनी मनसादेवी या मनुदेवी के लिए मेरे मनमें आई।
मनसा देवी का मंदिर सातपुडा में घने वनों में है। पहले यहाँ जंगल ही था, पर अब नियमित बसे जाती है, और भक्तों की भी भीड़ बढ़ने लगी है। नवरात्रि में तो विशेष रूप से लोग माँ के दर्शन के लिए मंदिर में जाते हैं। हर परिवार की कुलस्वामिनी मानी जाती है। ऐसा मानते हैं कि कुलस्वामिनी अपने परिवार पर हमेशा कृपा बरसाती है। माँ के नाम अनगिनत हो तो भी वह है तो एक ही माँ, जो साधना और कुण्डलिनी रूपसे हमारे अंदर विराजमान है वही साकार रूप धरकर पहाड़ों में प्रकट हुई है। नवरात्रि में तो माँ की बहुत याद आती है। मनुदेवी का मंदिर परिसर इतना शांत, सुन्दर और पवित्र है कि मन वहां जाते ही मन माँ मनसादेवी को अर्पित हो जाता है। एक अद्भुत शांति चारों ओर दिखने लगती है। मैं शायद दो तीन बार ही वहां गई हूँ, लेकिन मनुदेवी के मंदिर की स्मृतियाँ मनमें आते ही मन शांत हो जाता है।
आज की कविता लिखने से पहले भी मेरी आँखोंके सामने वो पहाड़ और जंगल था और एक पल के लिए मन
तड़प उठा...काश ऐसे एकांत में साधना का संयोग बनता। आज के समय में तो यह संभव नहीं लगता, लेकिन कल्पना से भी मन को सुकून मिलता है। जब मेरा मन एक ओर तो मनुदेवी के स्मरण में व्याकुल हो रहा था और उसी समय शांत भी हो रहा था, तभी यह काव्य माँ ने लिखवा लिया।
यह काव्य मेरे लिए प्रेम और भक्तिसहित भक्तावती का ध्यान है। ध्यान में हमारा मन हमारे
ध्येय में लीन हो जाता है। यह जब सहज ही, बिना किसी प्रयास के होता है, तब उसमें
ध्यान करनेवाला अर्थात ध्याता, उसका अस्तित्व ही नहीं रहता। ‘मैं’ ने ध्यान किया
यह अहंकार ही नहीं रहता...महायोग की विशेषता यही है कि मनोलय सहज होता है।
यह जीवनपुष्प देवी माँ के चरणों में
जिन्दगी छूटती जाती है
हाथोंसे
हर पल...
संसार की दौड़ धुप में विराम
का ना
एक क्षण...
हे माँ...
अब तुमसे अलग रहा नहीं
जाता...
साधना बिन जिया नहीं जाता...
तुम्हारे पास बैठकर साधना हो
एकांत में मन तुममें ही लीन
हो
बस कुछ पल तो ऐसे मिले
दुनिया से दूर बस तुम्हारा
ही नाम लूँ...
कुछ क्षण तो ऐसे मिले
साधना से विराम ही न लूँ...
कल नहीं ले पाई
आज नहीं ले पाई...
बस ऐसेही जिन्दगी बहती रही
तुम्हारे नाम बिना ऐसे ही
जिन्दगी चल चलती रही
शांति की आस में भागती रही
मृगजल से तृष्णा मिटाती
रही...
एक पल रूककर देखा
जलता प्यासा अपना ही ह्रदय देखा
कितना समय हाथ से छूट गया..
फिर भी मोह से होश नहीं आया
अब मैं तेरी शरण में हूँ माँ
अब साधना बिना नहीं है
जीना...
हर क्षण में
हर काम में
सुख-दुःख
और
प्रेम-विरह में
हर हाल में
गुर्वाज्ञा का पालन हो
तेरी ही कृपा में
तेरे चरणों में
मेरा मन लीन हो
इतना ही वरदान दो
मुझे गलेसे लगाकर
बस...
साधना से कभी मन न बिछड़े
यह आशीष दो
मेरा जीवन सवारकर
तुम ही समझ सकती हो
अपने बालक को
तुम मुस्कुराके स्वीकार करती
हो
मेरे अज्ञान को
जैसी भी हूँ...
अपने से कभी अलग न करना..
हर पल मेरा हाथ थामे रहना
समर्पण तेरे प्रति हर दिन बढ़ता जाए
साधना में अविरत उन्नती होती रहे
तेरी साधना से मन भर जाए
ऐसा क्षण जिन्दगी में ना देना
तुझे भूलकर जिन्दगी में भटकने का
अज्ञान एक क्षण भी रहने मत देना
अब तक तुम्हारे ही भरोसे जीती आई हूँ
आगे की राह भी तुमही बनाना
जिन्दगी की हर मुश्किल में बस
तुम्हारा ध्यान छूटने मत देना
हर कर्तव्य पूरा हो प्रेमसहित
लेकिन तुम्हें भूलने का अज्ञान न हो
यही कृपा मुझपर बरसाना
संसार में रहकर भी साधना से अलग न होने देना
हर रूप में मुझसे तुम्हारी ही पूजा हो
अद्वैत का ज्ञान ह्रदय में देना
विकाररहित मेरा मन हो
विवेक की शक्ति मुझे देना
अन्याय से पीड़ितों की आवाज मुझे बना देना
इन शब्दों में तेरी शक्ति भरकर
तेरा ही रूप इन्हें बना देना
सब कुछ तुमसे मांग रही हूँ
तुमसे ही तो मांग सकती हूँ, हे माँ
अपने स्वरूप में मुझे समाकर
हे माँ,
अपना ही रूप अब बना देना
अपने चरणों में इस जीव को अब लीन कर लेना
इस नवरात्री में प्रथम चार दिनों में माँ को समर्पित स्तोत्र:
- चैतन्यपूजा: साधन में दृढ़ निष्ठा देना
- जीवनमुक्ति: रक्ष रक्ष मम साधननिष्ठा
- विचारयज्ञ: साधन करण्या दृढ निष्ठा दे मज
- Narayankripa: My Life - Sadhana
मनसादेवी माँ की जानकारी मनुदेवी ट्रस्ट के अधिकृत वेबसाईट पर देख सकते हैं: http://www.manudevi.com/index.html