आज कुछ काव्यपुष्पों की या कहूं की भावनाओं की पंखुडियां ट्वीट की थी| उन्हींका विस्तृत हिंदी रूपांतरण ...
शनिवार की शाम,
न कोई काम,
न दिल को आराम
कुछ खालीसे बहके ख्याल
अब आगे क्या?
डार्क कॉफ़ी की कड़वाहट
सुकून से लाये मेरे चेहरेपर
खिलखिलाती मुस्कराहट
~~~ o ~~~
पढ़ती हूँ गहरी कविताओं को
कवी मुझे प्रेरित करते हैं
विचारों की वर्षा होने लगती है
कविताओं की पंखुडियां उड़ने लगती है...
~~~ o ~~~
गलतीसे कैसे हो गई गलतफहमियां?
क्या उन्होंने है मान लिया?
क्या मैंने सोचा था और क्या यह सब हो गया?
फिर भी लिखती हूँ
चाहे जो भी हो परिणाम
अपनी जिन्दगी जीती हूँ
~~~ o ~~~
दिल के शब्दों को
'दबाना'
अन्दर ही दबे रहने देना?
कवी की मृत्यु!
~~~ o ~~~
PS: एक कप कॉफ़ी मिले तो दिल कितना खुश होता है| आज मैंने बहुत दिनों बाद इतना दिल खोलकर लिखा है| बहुत अच्छा लग रहा है| सोचती हूँ..एक कप कॉफ़ी और ....
शनिवार की शाम,
न कोई काम,
न दिल को आराम
कुछ खालीसे बहके ख्याल
अब आगे क्या?
डार्क कॉफ़ी की कड़वाहट
सुकून से लाये मेरे चेहरेपर
खिलखिलाती मुस्कराहट
~~~ o ~~~
पढ़ती हूँ गहरी कविताओं को
कवी मुझे प्रेरित करते हैं
विचारों की वर्षा होने लगती है
कविताओं की पंखुडियां उड़ने लगती है...
~~~ o ~~~
गलतीसे कैसे हो गई गलतफहमियां?
क्या उन्होंने है मान लिया?
क्या मैंने सोचा था और क्या यह सब हो गया?
फिर भी लिखती हूँ
चाहे जो भी हो परिणाम
अपनी जिन्दगी जीती हूँ
~~~ o ~~~
दिल के शब्दों को
'दबाना'
अन्दर ही दबे रहने देना?
कवी की मृत्यु!
~~~ o ~~~
वो तुम्हारी कड़वाहट थी
मेरा दिल जिसने तोड़ दिया
तुमने जिसे 'अहम' का नाम दिया
उस टूटे दिल के साथ
जीना अब मैंने भी सीख लिया
~~~ o ~~~
मेरे आंसू नहीं तुम पढ़ पाए
दिल का दर्द समझोगे कैसे?
तुमने ही तो जाने के लिए कहा था जिंदगीसे
मेरे दर्द से तुम्हें अब फर्क पड़ेगा कैसे?
~~~ o ~~~
मेरी भावनाएं,
मेरा गहरा लगाव,
यह सिर्फ स्वार्थ लगा तुम्हें?
क्या पाना था मुझे तुमसे?
कब?
यह तोहफा भी तुम्हारा
आज स्वीकार कर लिया
~~~ o ~~~
तुम्हारे मेरे बारे में रोज रोज बनते मत,
तुम्हारे ही निर्णय,
तुम्हारा ही न्याय,
काश इस सबका कभी तो अंत होता!
काश कभी तुम अपने मतों को भूलकर
मेरी भावनाएं पढ़ पाते!
पढ़ पाते थे न?
क्यों बदल गए फिर?
सजा ही देनी इतनी बुरी
तो क्यों दोस्त बनाया था मुझे?
कभी सोचा?
तुम्हारी कड़वाहट के बाद मेरे आंसू रुकेंगे कैसे?
तुमसे बात नहीं हुई तो मैं जिउंगी कैसे?
तुमने मेरे मन में स्वार्थ पढ़ा?
तुमने मेरे आँखों में अहम् पढ़ा?
तुम तो ऐसे कभी नहीं थे पहले?
क्या हो गया था तुम्हे?
क्या हो गया है तुम्हे?
वो मेरा दोस्त कहाँ गया,
जो मुझसे बात करता था,
मेरे दर्द को समझता था...
कहाँ चला गया वो?
क्या तुम्हें याद नहीं, मेरे दोस्त?
~~~ o ~~~
आज तुम्हें लिखने का सोचा था..
मैं तो रोजही सोचती हूँ..
रोज पेन उठाती हूँ..
पहले की ही तरह..
पर नहीं..
तुम फिर गलत ही समझोगे..
जो कहा उसमें भी बुरा...
जो नहीं कहा उसमें भी बुरा...
मुझे तुम गलत ही समझोगे..
क्योंकी तुम्हें यही समझना है...
मुझे क्या चाहिए था तुम्हारी जिन्दगी से
जो मेरे प्यारे - मीठे से शब्दों में तुम्हें स्वार्थ दिखने लगा?
जो मेरी मिठास से तुम्हें नफरत होने लगी?
अगर आसान ही होता सब कुछ इतना
आसान ही होता तुम्हें समझना
तो मुझे इतने आंसू बहाने न पड़ते!
तुम्हारे मेरे बारे में मत
और निर्णय
एक बार सोचो....
मैं इन सबमें कहाँ हूँ?
~~~ o ~~~
रोज सिर्फ कविताएं
आज सोचा थोडा विराम लूं
आराम करू बस...
तुम्हारे कटु शब्द याद आ गए
आंसू भरी आँखों ने फिर लिखना शुरू किया
यह सब एक दिखावा लगता है न तुम्हे?
सिर्फ स्वार्थ,
सिर्फ नाटक?
कभी सोचा?
मुझे क्या मिलनेवाला है?
तुमसे कटकर,
टूटकर...
मुझे क्या मिलनेवाला है?
अपने आपसे रूठकर?
~~~ o ~~~
तुम्हारा नजरिया तुम्हें
बार- बार
'मेरा अहम्' दिखाता है
मेरा दिल
बार-बार मुझे
तुम्हारा विनम्र ह्रदय दिखाता है
कौन जीता?
अगर है यह अहम् की ही लड़ाई
तुम्हारे लिए
तो मैं इसे हारना चाहती हूँ..
बार बार हारना चाहती हूँ..
तुम्हारे लिए..
तुम्हारी ऊंचाई पर तो मैं कभी थी ही नहीं..
क्या कभी हो सकती हूँ?
सपने में भी नहीं!
तुमने क्यों मुझे इतना बड़ा मान लिया?
तुम्हारे मानने की सजा मुझे क्यों?
मैं तो कभी थी ही नहीं...
'कुछ भी...'
~~~ o ~~~
कविता मेरी,
शब्द मेरे
दर्द तुमने दिया
टूटा दिल मेरा,
आंसू मेरे
तुम जीतो हमेशा...
मैं तो यही चाहूंगी...
हमेशा...
~~~ o ~~~
कठोर बनो,
गुस्सा करो,
मुझसे नफरत करो,
फिर भी..
अच्छा लगेगा मुझे
मेरे बारे में सोचा तो सही
~~~ o ~~~
आंसूंओं से भरी मेरी कविता..
देखो जरा
कुदरत भी रो रही है..
आंसुओं की इस बारिश को
कभी महसूस किया तुमने?
एक बार भी?
~~~ o ~~~
दीवाना समझते हो न?
दीवानगी से ही लिखती हूँ मैं
आज नहीं सह पाई
आज नहीं छुपा पाई
टूटे दिल का दर्द
तुम्हारे दिल तक मेरी आवाज पहुंचे न पहुंचे
मैं तो उसी दिन हार गई थी..
जब तुमने 'जाने' के लिए कहा था...
तुम तो भूल भी गए
मैं तो पहले से ही हार चुकी हूँ
पहले तुम्हारी दीवानगी में हार गई थी
फिर तुम्हारी कड़वाहट ने मुझे हरा दिया...
~~~ o ~~~
मन की पीड़ा
क्यों तू आज बोल पडी
कितने दिन था छुपाया तुझे
क्यों कमजोर-मूर्ख तू
आज रो पडी
~~~ o ~~~
~~~ o ~~~
मन की पीड़ा
क्यों तू आज बोल पडी
कितने दिन था छुपाया तुझे
क्यों कमजोर-मूर्ख तू
आज रो पडी
~~~ o ~~~
PS: एक कप कॉफ़ी मिले तो दिल कितना खुश होता है| आज मैंने बहुत दिनों बाद इतना दिल खोलकर लिखा है| बहुत अच्छा लग रहा है| सोचती हूँ..एक कप कॉफ़ी और ....