भाद्रपद
कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पितृ पक्ष का आरम्भ होता है| बहुत लोग पितृ पक्ष अशुभ मानते हैं; किसी भी शुभ कार्य के लिए तो यह
१५ दिन लोग वर्ज्य मानते हैं| क्या पितृ पक्ष अशुभ होता है? आखिर श्राद्ध को अशुभ
क्यों माना जाता है? श्राद्ध से जुड़े हुए विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता आजका आलेख|
पितृ पक्ष में महालय श्राद्ध:
पितृ का
अर्थ हमारे पूर्वज होते हैं| श्राद्ध मृत पूर्वज और हमारे जो प्रियजन समय से पहले ही दुनिया छोड़कर
जा चुके होते हैं उनका किया जाता है| श्राद्ध मृत्यु की तिथि पर हर वर्ष किया जाता
है| पितृ पक्ष अलग से हमारी संस्कृति में श्राद्ध के लिए तय किया गया है| पितृ
पक्ष का श्राद्ध, जिसे महालय श्राद्ध भी कहते हैं, वार्षिक श्राद्ध के अतिरिक्त
होता है| (अर्थात वार्षिक श्राद्ध के पर्याय के रूप में नहीं|)
हमारी
संस्कृति के अनुसार मृत्यु के बाद भी जीवन होता है| पुराणों की कथाएँ और
ज्ञानोपदेश अगर देखें तो पता चलता है कि मनुष्य का शरीर मृत्यु के बाद यही रह जाता
है और ‘सूक्ष्मजीव’ अपने कर्मों के फल के अनुसार स्वर्ग, नरक या ब्रह्मलोक,
शिवलोक, गोलोक आदि लोकोंमें जाता है| शिवलोक, विष्णुलोक या गोलोक अपुनारावर्ती लोक माने गए
हैं| शिव के निस्सीम भक्त शिवलोक में, विष्णु के विष्णु लोक में या कृष्ण के भक्त
गोलोक में मृत्यु के बाद जाते हैं| ब्रह्मलोक तक जितने भी लोक हैं वहां पुण्यफल
भोगकर जीव का पुन: पृथ्वी पर जन्म होता है| इसलिए ब्रह्मलोक तक सभी लोक पुनरावर्ती
हैं|
हर मनुष्य ने अपने जीवनकाल में सत्कर्म और साधना से कर्मों के बंधन से मुक्त होने
का प्रयास करना चाहिए| क्योंकी मृत्यु के बाद किसीके श्राद्ध करने पर निर्भर रहना
अवास्तव कल्पना होगी|
मृत्यु के
बाद की स्थिति और गति के बारे में हम यहाँ जान नहीं सकते इसलिए मृत्यु के बाद जीव पितृ
लोक में जाता है यह संकल्पना हम मानते हैं| हर लोक में दिन और रात के मिति प्रमाण, अन्न के प्रकार अलग होते
हैं| उदाहरण के लिए पितृ लोक में पृथ्वी के पंधरा दिनों का एक दिन होता है| हर लोक
में अन्न के प्रकार अलग होते हैं| परन्तु श्राद्ध में जब हम यहाँ पृथ्वीपर तर्पण करते हैं
तो पूर्वज जिस भी लोक में हो वहां उस लोक के अनुरूप अन्न उन्हें मिलता है|
श्राद्ध
का अर्थ श्रध्दा से किया गया कर्म| हम परम्पराओं का पालन करते समय शास्त्रों में
लिखी गई बातें या विधिविधान का शब्दशः पालन करने का प्रयास करते हैं| लेकिन हर उपचार,
उपासना, पूजा, उपवास के वर्णन में एक शब्द होता है ‘यथाशक्ति’ जो दुर्लक्षित ही रह
जाता है| कुछ गलत न हो जाए इस भय से धार्मिक उपचार भय के साथ किए जाते हैं| और इस
सबमें ‘भाव’, ‘श्रद्धा’ जो किसी भी धार्मिक विधि का प्राण होना चाहिए कहीं खो जाता
है| हमारी संस्कृति ज्ञान, प्रेम और भक्ति
का गहन महासागर है, उसे केवल भावरहित कर्मकांड में सीमित करके कहीं न कहीं हम
संकीर्ण करते हैं| परम्पराओं का पालन उनका प्रयोजन जानकर और उनके विधि भयरहित होकर करना अधिक उचित लगता है|
क्या पितृ पक्ष और श्राद्ध अशुभ होता है?
अपनेही
लोग, जो हमें छोड़कर जा चुके हैं, क्या हमारे लिए अशुभ हो सकते हैं? उनको याद करना,
उनके लिए श्राद्ध करना अशुभ कैसे हो सकता है? पितृ पक्ष को अशुभ मानने का कोई कारण
मुझे तो नहीं लगता| हम मृत्यु को अशुभ मानते हैं और श्राद्ध मृत व्यक्ति से जुडा
हुआ होने के कारण शायद उसे अशुभ माना गया हो| और भय से किसी प्रथा को जन्म दिया तो फिर उसको बहुत अतार्किक दिशा में लाया जाता है|
जन्म और मृत्यु से हर जीव को जाना ही
होता है| फिर जो चले गए हैं, उन्हें अशुभ मानना, क्या एक तरह से उनके प्रति कृतघ्नता नहीं होगी?
श्रद्धापालन में विवेक:
इन परम्पराओं की अंधश्रद्धा के रूप में आलोचना होती रहती है| पर मुझे यह लगता है कि किसी भी बात को नकारने से पहले क्यों न संशोधन हो| जैसे अंधेपन से अनुसरण गलत है, ठीक वैसे ही अंधेपनसे पुराणों
को या परम्पराओं को सीधे मिथक मानना भी खुली- आझाद सोच का लक्षण नहीं हो सकता| वहीँ सबकी स्वीकार्यता पाने के लिए, हर प्रथा को विज्ञान में जबरदस्ती बिठाने के प्रयत्न भी सही नहीं लगते| पुराणों का उद्देश्य मूलत: मानव जीवन की सार्थकता को समझने के लिए और उसे प्राप्त करने के लिए है| अगर हम भी यह हेतु ध्यान में रखकर पौराणिक कथाओं को और प्रथाओं को समझे तो किस श्रध्दा को कैसे पालन करना है, किसे नकारना है यह विवेक भी मनमें जागृत होता है|
पितृ पक्ष है पूर्वजों से शुभाशीर्वाद पाने का पर्व:
आप पुनर्जन्म
पर भलेही विश्वास करे न करें, पर क्या अपने पूर्वजों को याद करने की परंपरा आपको जीवन के लिए ऊर्जादायी नहीं लगती? कुछ दिन, कुछ पल वह स्मृतियाँ जो साथ बिताई थी, जो
शिक्षा हमारे पूर्वजों ने हमें दी थी, हमारे लिए जो कष्ट उन्होंने उठाए थे, इन सब
को याद करना हमारे मन को कितना सुकून देनेवाला हो सकता है| अपने प्रियजनों की
यादों को कुछ पल फिरसे जीने के लिए किसी धर्म या
जाति विशेष का होना जरूरी नहीं
है|
पितृ पक्ष को पूर्वजों के प्रति स्मृतियाँ, प्रेम और कृतज्ञता का शुभ पर्व माना जाना चाहिए| शुभ इसलिए कि हमारे पूर्वजों के आशीर्वाद से हमारा जीवन सुखी और यशस्वी होगा|
This article in English:
Pitru Paksha Shrāddha: Fortnight To Express Gratitude toward Deceased Ancestors
अद्यतन (अपडेट): इस आलेख के बाद बहुत लोगों ने पितृ पक्ष के श्राद्ध को अशुभ मानने की परंपरा को छोड़ा है ऐसा दिखता है| मूलत: धार्मिक लोगों के लिए लिखे इस आलेख के बाद, धार्मिक विषयों से सम्बन्ध न होने के बावजूद लोगों में पुराणों के प्रति भी रूचि निर्माण होती दिख रही है| पुराणों के प्रति प्रश्न और विचारमंथन आरम्भ हो रहा है|
इस आलेख पर आपके समर्थन के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद| आप जैसे गंभीर और विचारशील पाठक, जो हमारी चैतन्यपूजा को केवल पढ़ते ही नहीं बल्कि उसपर आगे मंथन करते हैं, आप सब मेरी शक्ति और मेरी प्रेरणा हैं| आपको मेरा हार्दिक धन्यवाद|
This article in English:
Pitru Paksha Shrāddha: Fortnight To Express Gratitude toward Deceased Ancestors
अद्यतन (अपडेट): इस आलेख के बाद बहुत लोगों ने पितृ पक्ष के श्राद्ध को अशुभ मानने की परंपरा को छोड़ा है ऐसा दिखता है| मूलत: धार्मिक लोगों के लिए लिखे इस आलेख के बाद, धार्मिक विषयों से सम्बन्ध न होने के बावजूद लोगों में पुराणों के प्रति भी रूचि निर्माण होती दिख रही है| पुराणों के प्रति प्रश्न और विचारमंथन आरम्भ हो रहा है|
इस आलेख पर आपके समर्थन के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद| आप जैसे गंभीर और विचारशील पाठक, जो हमारी चैतन्यपूजा को केवल पढ़ते ही नहीं बल्कि उसपर आगे मंथन करते हैं, आप सब मेरी शक्ति और मेरी प्रेरणा हैं| आपको मेरा हार्दिक धन्यवाद|