जन्माष्टमी के पावन पर्व पर सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएँ| आपका आजका पर्व का दिन बहुत उत्साह से भक्तिमय हो यही भक्तों के प्यारे, हम सबके कृष्ण से मेरी प्रार्थना| आज की प्रस्तुति नवविधा भक्ति का सर्वोच्च रूप जिसे माना जाता है, उस आत्मनिवेदन भक्ति पर है|
कृष्ण की कृपा से हममें इतना आत्मविश्वास आता है कि हम साक्षात भगवान को भी अपना दोस्त मानने लगते हैं, उनसे प्रेम तक करने लगते है| फिर भक्ति का स्वरूप भी वही समझा देते हैं, ज्ञान भी दे देते हैं| भगवद्गीता पर मराठी में रचित ज्ञानेश्वरी में भगवान कृष्ण का अपने भक्तों के प्रति प्रेम बहुत विस्तार से दिया है और वह पढ़कर बहुत आनंद आता है| एक जगह भगवान कहते अर्जुन से हैं, "तुम मेरे भक्त हो, मेरे सखा हो इसलिए मैं तुम्हे यह फिरसे समझा रहा हूँ| तुम्हे अच्छा तो लगेगा न?" और अर्जुन कहते हैं, "भगवान का प्रसाद मिल रहा है और कोई कह सकता है कि मेरा पेट भर गया है?" इसलिए मेरे कृष्ण की ही कृपा से उनके लिए आत्मनिवेदन पर आज का काव्य...
भगवान श्रीकृष्ण पर और कविताएँ:
कृष्ण की कृपा से हममें इतना आत्मविश्वास आता है कि हम साक्षात भगवान को भी अपना दोस्त मानने लगते हैं, उनसे प्रेम तक करने लगते है| फिर भक्ति का स्वरूप भी वही समझा देते हैं, ज्ञान भी दे देते हैं| भगवद्गीता पर मराठी में रचित ज्ञानेश्वरी में भगवान कृष्ण का अपने भक्तों के प्रति प्रेम बहुत विस्तार से दिया है और वह पढ़कर बहुत आनंद आता है| एक जगह भगवान कहते अर्जुन से हैं, "तुम मेरे भक्त हो, मेरे सखा हो इसलिए मैं तुम्हे यह फिरसे समझा रहा हूँ| तुम्हे अच्छा तो लगेगा न?" और अर्जुन कहते हैं, "भगवान का प्रसाद मिल रहा है और कोई कह सकता है कि मेरा पेट भर गया है?" इसलिए मेरे कृष्ण की ही कृपा से उनके लिए आत्मनिवेदन पर आज का काव्य...
न फूल है,
न मिठाई
अपना मन
ही ले आई हूँ साथ
तुम्हारे
लिए
अच्छा-बुरा,
सच्चा-झूठा
हे मेरे ईश्वर,
चाहे जैसा तुम इसे समझना
पर यही बस्
अब है मेरे पास
तुम्हारे
लिए
बड़े बड़े
दान, बड़ी बड़ी पूजाएँ
ये सब तो
कभी न थे मेरे बसके
मेरा मन
ही है बस, जिसपर मेरा बस है
वह लाइ
हूँ
तुम्हारे
लिए
तप,
ध्यान, भक्ति और ज्ञान
इन सबसे
मैं सदासे हूँ अनजान
फिर भी एक
ही रस है इस जीवनका
तुम्हारे लिए
जीना
यह जीवन
ही अर्पण करने लाइ हूँ
तुम्हारे
लिए
मोह के
जाल में फसकर
जिन्दगी
की लड़ाई में हारकर
आज मैं आई
हूँ
तुम्हारे
लिए
मेरा मोह,
मेरा दुःख, मेरी हताशा
सबकुछ
अर्पण करने लाइ हूँ
तुम्हारे
लिए
अहम् के
भंवर में मुझे कभी फंसने न देना
क्रोध की आंधी
में बिखरने न देना
विषाद के
व्यर्थ दुःख में कभी बहने न देना
मेरा मन, मेरे
प्राण, मेरे श्वास है बस
तुम्हारे
लिए
मैं भूल
भी जाऊं तुम्हे कभी संसार के मोह में
पर हे
प्रभो, तुम मेरा साथ कभी न छोड़ना
अब संसार
का यह दुःख मुझसे सहा नहीं जाता
अविचल
शांति की याचना करती हूँ
मुझे बस्
जीना है
तुम्हारे
लिए
मेरी
प्रार्थना स्वीकार करो..
मुझे जीना
है बस् ...
तुम्हारे लिएभगवान श्रीकृष्ण पर और कविताएँ: