हलकी हलकी बारिश की दीवानगी

आखिरकार बारिश शुरू ही हो गई| एक सप्ताह तक बस बादल आते थे, ऐसा लगता था अभी बारिश होगी लेकिन, फिर कुछ नहीं| लेकिन बादमें हलकी हलकी बारिश का मजा लेने का मौका मिला गया| इसी बारिश की दीवानगी की कहानी...

इस हलकी हलकी बारिश में भी एक दीवानगी है मेरी तरह चुप चुप रहकर भी यह कुछ कहती है मेरी तरह



प्रतिमा: बादल से भरा आकाश






बादल इतने नीचे आए थे, ऐसे लग रहा था, लपक कर पकड़ लूँ| सोचा बाहर तो कुदरत ही इतना सुन्दर काव्य लिख रही है, स्क्रीन के सामने बैठकर हम क्या कविता लिखे! बारिश बहुत ज्यादा तो नहीं थी...इसलिए कुदरत का काव्य पढने के लिए मैं आसपास के गावों का और खेतों का दृश्य देखने कविता अधूरी छोड़कर चल पडी| हाइवे पे बड़े बड़े ट्रक जैसे वाहनों के पीछे एकदम से तुषार उड़ रहे थे| वो दृश्य देखने में बहुत मजा आ रहा था| तुषार अलग अलग दिखते हुए भी सिर्फ कुछ ही अंतर तक जमा होते दिख रहे थे| धुले में इस तरह का मौसम बहुत कम देखने को मिलता है| खेतों में बीज बोए जा चुके थे और काली मिटटी (महाराष्ट्र में किसान इसको काली आई - माँ कहते हैं) मुस्कुरा रही थी| सिर्फ एक अच्छी उपमा के लिए नहीं..वाकई ऐसा लग रहा था जैसे धरती भी मुस्कुरा रही हो, बारिश में भीगकर खुश हो रही हो| रास्ते भी काले काले - धुले हुए लग रहे थे - चमक रहे थे| लोग भी बहुत खुश थे| 

कहते हैं कि आप अकेले अकेले मुस्कुराने लगो तो शायद आपको प्यार हुआ है| पर आप कुदरत के साथ हो तो उस निसर्ग सौन्दर्य से प्यार हुए बिना रहता नहीं और अकेले होते हुए भी आप मुस्कुराने लगते हैं| बादल-आसमान कितने अच्छे लग रहे थे क्या बताऊँ...! 


जैसे जैसे शहर से बाहर की तरफ जाओ, बारिश बढ़ने लगती थी| बादल और नीचे - नीचे नजर आने लगते थे| ऐसा लग रहा जैसे क्षितिज जो कभी दूर जाता दिखता था, हाथ जोड़कर स्वागत करने खड़ा हो| सड़क के उपरी मार्ग पुल पर बारिश जरा जोरोसें लगती थी| पर इस मार में, बूंदों के इस स्पर्श का मजा भी अद्भुत था| लेकिन इस मजे की बाद में थोडीसी (आकsssssssछी) सजा (आकsssssssछी) भी मिली|

मन में कितने विचार चलते रहते हैं लेकिन पहली बारिश से मन एकदम से शांत होता है| भूत भविष्य की चिंता छोड़कर हर पल में जीना, हर पल का अनुभव करना कितना सुन्दर अनुभव होता है| मुझे पहले लगता था कि जब मन में बिलकुल भी विचार नहीं आते ऐसी अवस्था ही आदर्श है| लेकिन विचार तो आते जाते रहते हैं..सुख- दुःख नहीं बदल सकते फिर भी जो भी भावना मन में उठती है उसका अनुभव करना और फिर भी उससे अलिप्त रहना यह भी आदर्श है| जीवन की चिंताएं और समस्याएँ कुछ भी तो नहीं बदला था| फिर भी जो है, जैसा है उसमें ही इस खुबसूरत हलकी हलकी बारिश से मन शांत हुआ|


कुदरत की जादूगरी ऐसी होती है कि जो अनुभव बड़े बड़े आध्यात्मिक पुस्तकों में वर्णित होते हैं वह शांति और आनंद सहज ही मिलने लगता है| मन में विचारों के बादल उठ रहे होतें हैं फिर भी मन उनसे अलिप्त हो जाता है| पेड़, पौधे, रास्ते, पहाड़, छोटे-बड़े वाहन, मिट्टी, खेत, घर, लोग - सजीव - निर्जीव जो भी आँखों के सामने है सब एक चैतन्य का अविष्कार है| और आँख बंद करे तो वही चैतन्य आत्मा के रूप में प्रकाशित है| निसर्ग रूपी माँ से मिलने जाओ तो वह भी दसो दिशाओं से अपनी ख़ुशी और प्यार ऐसे बरसाती है|

क्या आपने हलकी हलकी बारिश की दीवानगी का मजा लिया? अभी तक नहीं लिया तो...घर से और ऑफिस से बाहर निकलिए...कुछ पल के लिए रोज के तनाव और काम छोड़ दीजिए...बारिश की दीवानगी के साथ थोडेसे दीवाने आप भी बनिए...


आप अपनी प्रतिक्रिया इस फॉर्म के जरिए भेज सकते हैं: प्रतिक्रिया

अन्य निसर्ग कविताएँ: