विवाहों का मौसम
चल रहा है
और विवाह अर्थात
बारात और बारात
मतलब डीजे! तो
गर्मी के प्रकोप
के साथ साथ
डीजे का प्रकोप, शोर और
अश्लील गानों का
कहर चल रहा
है। यहाँ तो
यही हालत है। अभी जब
मैं यह लिख
रही हूँ, बाहर
डीजे चल ही
रहा है। शायद यही
सबसे अच्छा समय
है, इसके बारे
में कुछ चर्चा
करने का! आज
डीजे के बारे
में ही चर्चा
करते हैं।
बारातों में डीजे:
परसों शाम
को घर लौटते
समय शहर के
सबसे व्यस्त चौक में
सारा ट्रैफिक खड़ा था, हाँ! बारात
आ रही होगी
यह डीजे के
शोर से मुझे
दूर से ही
पता चल गया
था। गाड़ियाँ, पैदल
चलने वाले लोग, सब बिलकुल बेचारे होकर रास्ते
के एक कोने
में किसी तरह
अपने आप को
सुरक्षित रखने की
कोशिश कर रहे
थें। मैं भी
उन्हीमें थी। सामने कैमरे
लेकर फोटोग्राफर बारात की
शूटिंग कर रहे
थे। दुल्हे राजा मेक
अप से अपने
आपको चमकाकर किसी एक
असहाय बेबस घोड़ी
पर बैठे थे। (पता नहीं
वो घोडी क्या
सोच रही होगी
यह सब सहते
हुए) बारात में
नाचनेवाले लोग इतना
भीड़ भाड़वाला रास्ता जैसे अपने
घर का आँगन
हो इस तरह
से अपनी नृत्यकला(!)
जिसे मद्यपान के कारण
चार चाँद (!) लगे थे, हम जैसे
बेबस आम नागरिकों
के सामने पेश
कर रहे थे। वे जरूर
सोच रहे होंगे
.. वैसे मद्यपान और अश्लील
गाने इतने जोर
से बज रहे
हो तो सोचने
विचारने जैसी कोई
बात करना यह
तो हो ही
नहीं सकता...फिर भी
जिस निर्लज्जता से ये
लोग नाचते हैं, मुझे लगता
है, यह सोचते
होंगे कि लोगों
को मुफ्त में
नाच – गाना देखने
को मिल रहा
है।
खैर, यह
सब मैं अब
लिख रही हूँ, उस वक्त
मैं सिर्फ अपना
मस्तिष्क ठंडा रखकर
रास्ता खुलने की
राह देख थी। वैसे ऐसी
घटनाओं का सकारात्मक
फायदा हमारे जिन्दगी
में यह होता
है कि हम
क्रोध पर विजय
पाना सीखते हैं, प्रत्यक्ष सीखते हैं। यह बात
किसी पुस्तक, या
प्रवचन को सुनकर
सीखी नहीं जा
सकती। यह विलक्षण
अनुभूती होती है
अगर आप वाकई
इन सब चीजों
के तरफ दुर्लक्ष
करना सीख ले...तो! और
नहीं भी सीख
ले तो हम
कर भी क्या
सकते हैं।
आधे मिनट
तक मैंने वो सब बारात देखी और दुसरे लम्बे रास्ते से घर निकल आई। घर पहुँचने पर भी कहाँ शांति है! यहाँ भी एक साथ दो-तीन डीजे चल रहे होते हैं। यह तो बताने की जरूरत ही नहीं, गाने किस तरह के होते हैं। गाने और नृत्य को हम लोग कला मानते हैं। लेकिन ऐसा भी एक वर्ग है, जो गानों को आयटम मानता है, महिलाओं को आयटम मानता है और तो और ऐसी महिलाएँ
भी हैं जो खुद अपने आप को आयटम मानती हैं। बारात में ये आयटम नाम की जो कुछ चीज है, गाना तो मैं उसको नहीं कहूंगी, उसमें न तो सूर – ताल होता है , न शब्द! भावनाओं का तो सवाल ही नहीं। न ही गानेवालों की आवाज सुनने या सहने लायक होती है। हर डीजे पर कुछ अलग शोर होता है। मुझे सारे गाने मिलाकर शोर सुनाई देता है। एक पंक्ति एक गाने एक दिशा से कान और मस्तिष्क पर आघात करती है, उससे सँभलने की कोशिश करने से भी पहले दुसरे दो-तीन गानों की आवाजें दिमाग को लहूलुहान करती जाती है। रोज ३-४ घंटे देर रात तक सब यह चलता है। डीजे के लिए कोई नियम नहीं है। बंद होने के समय के नियम हम सुनते हैं, लेकिन ऐसे नियमों का पालन सिर्फ शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में ही सुनाई देता है। यहाँ तक की रात को गाए जानेवाले राग भी इस नियम के कारण बंद हो गए थे।
आवाज कितनी डेसिबल होनी चाहिए इसके लिए शायद नियम हैं, पर उनका भी पालन होता नहीं दीखता। वृद्ध लोग, बीमार, गर्भवती महिलाएँ, स्कूल, अस्पताल, आईसीयू में अत्यवस्थ लोग इन सब के लिए यह शोर हानिकारक है। अध्ययन रत छात्रों के लिए यह शोर कितना बड़ा विघ्न है।
पर परवाह किसे है? ये कैसा नशा है? किस बात का नशा है? यह नशा है विनाश का रास्ता है?
अपनी शादी की खुशी अपने और अपने परिवार – मित्रों तक रहे तो बात समझ में आती है। इसमें कुछ भी गलत नहीं। लेकिन भीड़ के रास्ते, चौक सब कुछ किसी एक इन्सान के शादी के लिए रोक लेना। मैंने जो दुल्हे राजा देखे, उनके चेहरे पर जरा भी संकोच नहीं था, एक सुशिक्षित नागरिक का दायित्व क्या होता है और उसका वह भंग कर रहे हैं, इस बात की जरा भी शर्म नहीं थी। अगर इससे कोई अपघात हो तो भी किसीको सुनाई भी नहीं देगा। एक खबर पढने में आई थी। एक पुरानी इमारत डीजे के शोर में गिर गई और उसके कारण दबकर कुछ लोगों का मृत्यु भी हुई थी।
शादी एकही बार होती है, ऐसा कहकर, सिर्फ अपने ही बारे में सोचा जाता है।
क्या यह भी कोई ख़ुशी मनाने का तरीका है?
पहले कुछ अश्लील गाने सिर्फ होली के दिन लगते थे। आजकल वह रोज शादियों में बजाए जाते हैं। मुझे जब भी यह गाने सुनाई देते हैं, एक प्रश्न बहुत सताता है, कोई भी नववधू अपनी शादी में इस तरह के गाने सुनना कैसे पसंद करती होगी? इतने सुंदर पवित्र प्यार के रिश्ते की शुरुवात में इतने सारे लोग अश्लील गाने गाए, सब असभ्य नाच करे तो यह उसे कैसा लगता होगा? पहले शादियों में मंगलवाद्य शहनाई बजती थी और अब आयटम नाम की चीज!
वधु के मातापिता ही हमारे यहाँ अक्सर शादी का सारा खर्चा करते हैं, उनको यह सब कैसे ठीक लगता होगा? और मुझे यह भी समझ में नहीं आता कि क्या यह परंपरा है, यह धर्म है? ज्यादा तर लोग मुहूर्त देख कर शादी करते हैं लेकिन हम अक्सर सुनते हैं कि मुहूर्त पर शादी नहीं हो पाती क्योंकी बारात! मुझे यह इतना मजेदार लगता है, अगर मुहूर्त को टालना ही है तो मुहूर्त देखते ही क्यों है?
कुछ लोग बिना बारात के सिर्फ और सिर्फ डीजे के लिए अलग से - शायद डीजे की रस्म कहते होंगे उसे - समय रखते हैं। कुछ अवसरों पर तो महिलाए भी नाचती हैं ऐसे गानों पर जिनमें उन्हें आयटम कहा गया हो।
क्या वेदों में, वैदिक मन्त्रों, स्मृतियों में या पुराणों में इस तरह की बेतुकी परम्पराओं का उल्लेख है?
डीजे चलाने के शौक में वैसे तो धर्म - जाती का कोई भेद नहीं न ही आर्थिक वर्ग का।
धर्म और भक्ति में डीजे:
किसी भी धार्मिक उत्सव में भी डीजे का प्रयोग किया जाता है।
यहाँ तक की शिर्डी तक पदयात्रा करने को निकलते हैं तो साथ में उन्हें डीजे लगता है। सारे भक्ति के भजन फिल्मों के लोकप्रिय गानों की धुनों पर बजते हैं, यह भक्त लोग बीच बीच में रूककर पागल की तरह नाचते हैं और फिर आगे निकलते हैं। यह किस तरह की भक्ति है?
राजनैतिक जश्न में डीजे:
यह तो आम लोगों का हाल है, राजनैतिक दल भी छोटी नगर निगम चुनावों की जीत भी मनाने के लिए डीजे का प्रयोग करते हैं। इस सब के लिए जो पैसा खर्च होता है वह यह लोग क्या पार्टी फंड से इस्तेमाल करते हैं?
जीतने पर नई जिम्मेदारी के साथ काम पर लग जाना ही राजनेताओं के लिए उचित होना चाहिए पर जिसे पहले यह लोग हमारी समस्याओं के लिए लड़ाई बताते हैं वह चुनावों के बाद कार्यकर्ताओं की मेहेनत के बदले में तोहफा या जीत का जश्न होता है।
क्या आप भी मेरी तरह इन डीजे से परेशान हैं?