हिंदी ब्लॉग के रूप में चल रही चैतन्यपुजा को आज तीन वर्ष पुरे हुए...विश्वास नहीं होता 'यश दो हे भगवन्' इस प्रार्थना से इस ब्लॉग का प्रारंभ हुआ और आज तीन वर्ष हो गए, भगवान ने यथार्थ में यश से परिपूर्ण लेखन मुझसे लिखवा के मेरा जीवन धन्य कर दिया। ब्लॉग या लेखन का यश यह यथार्थ रूपसे यश है यह बार बार यहाँ और अन्य ब्लॉग पे भी अधोरेखित करने का कारण यह है की वास्तव में पूजा वह है जिससे मन में उठते अनंत तरंग शांत हो एक अद्भुत आनंद का अनुभव हो और जब यह अनुभव केवल कुछ क्षणों या कुछ समय के लिएहि न रहकर जीवन के हर क्षण का ही अनुभव बन जाए, जीवन ही आनंदमय बन जाए तो वह यश शाश्वत है और मनुष्यदेह का सार्थक भी है। ऐसा यश और आनंदामृत का पान करानेवाला दिव्य लेखन लिखने की क्षमता मुझमें नहीं है, ना मेरी वह योग्यता भी है, परन्तु फिर भी ऐसा हो रहा है और तीन वर्षों से भी अधिक समय से सहज ही हो रहा है इसमें श्रीसद्गुरुदेव की कृपा हे एकमेव कारण है।
और जब इस कृपा स्मरण होता है, तो बार बार मन दिव्य भावों से भर जाता है, इस आनंद से कभी कभी वाणी भी रुक जाती है या लेखन भी नहीं हो पाता तो कभी कभी भक्तिमय प्रार्थना ही हृदयसे प्रस्फुटित होती है....
हे सद्गुरूजी, श्रीगुरूजी प्रार्थना हमारी सुन लीजे
कृपासिंधु करुणासिन्धु भक्ति साधना की हमें दीजे
भटक रहें हम भवभयसे क्लेश दुःख बहु सह रहे
साधनाहीन चंचल मनु भगवन भूल के रही है
कामक्रोधादी विकार तरंग अनन्त मन माही उठत है
शान्ति सागर नाम आपका लेत मन तरंग मिटत है
उपासना एक प्राणदेव की जो आपने सिखायी है
मन न हो विचलित उससे प्रार्थना एक बस यही है
'साधना' बिनु एकहि दिनु जीवन में हमारे न रही है
साधनामय तन मन जीवन गुरुचरण लीन रहि है
"हे सद्गुरुदेव! यह चैतन्यपुजा जो आपकी कृपा और आशीर्वाद से आरम्भ हुई है यही हमारा जीवन बनें।
हमारे जीवन एक भी दिन साधना बिना न बीते।
हम 'साधक' हैं और हम हमेशा साधक की मर्यादा में ही रहें। सद्गुरू तो केवल आप ही है। जो ज्ञान और भक्ति आपने दी है वह साधा अहंकार रहित रहें। हमें अहंकार और श्रेष्ठत्व के मद से सदा बचाइए।
विनम्रता का अलंकार हमें सदैव सौन्दर्य प्रदान करें।
हमारा मन एक क्षण भी अनीती, अधर्म, अन्याय, अत्याचार और कुमार्ग के पथ पे न चलें।
मन ही शुद्ध होगा तो कर्म भी शुद्ध होंगे। इसलिए हमारा मन साधा सदाचार - धर्म - भक्ति में ही लीन रहें।
अधर्म और राष्ट्र शत्रुओंसे लाधने की शक्ति आप हमें प्रदान करें। कायरता के कारण राष्ट्र - शत्रुओंसे 'शान्ति के लिए' शरणागति लेने का महापाप हमसे कभी न होवे, न ही ऐसा भ्रम हमारी बुद्धि में उत्पन्न होवे।
जगद्गुरू भगवान श्रीकृष्ण रूप में आपने जो निष्काम कर्मयोग सिखायाहाई, उसीमें हमारा जीवन सहज व्यतीत हो, यह आपकीही केवल आपकीही कृपासे सहज संभव है।
अध्यात्म का महानतम योग महायोग - शक्तिपात योग की जो कृपा दीक्षा आपने हमें दी है, उस साधना का विश्व शान्ति के लिए प्रचार - प्रसार, सदैव साधक भावसे साधनासहित चलता रहे इसलिए आप हमारे ह्रदय में विराजमान हो हमसे हमारा कर्त्तव्य पूर्ण करवा लीजिये...
आपकी कृपासे चैतन्यपुजा ही हमारा जीवन बनें..और जीवन ही चैतन्यपुजा बनें..."
इस पूजा में मेरा साथ हमेशा जिसने दिया है वह मेरी प्रिय सखी आरतीजी हैं, जो हमें ब्लॉग 'माय यात्रा डायरी' के माध्यम से तीर्थयात्रा करने का सौभाग्य प्रदान करतीं हैं। हर कविता को वह केवल पढ़तीं ही नहीं लेकिन हृदयसे इस चैतन्य पुजा में अपने भाव - पुष्प भी लातीं हैं..उनकी प्रेरणा के बिना अविरत लेखन करना असंभव लगता है। मैं आभार प्रदर्शित करके उनकी भावनाओं को केवल औपचारिक रूप नहीं दूँगी..पर हाँ आरतीजी! आपसे यह आग्रह अवश्य है, हमेशा हमें प्ररित करते रहिएगा...:-)।
ट्विटर पर: @Chaitanyapuja_
और जब इस कृपा स्मरण होता है, तो बार बार मन दिव्य भावों से भर जाता है, इस आनंद से कभी कभी वाणी भी रुक जाती है या लेखन भी नहीं हो पाता तो कभी कभी भक्तिमय प्रार्थना ही हृदयसे प्रस्फुटित होती है....
ऐसीही एक प्रार्थना आज हृदय में आयी...
हे सद्गुरूजी, श्रीगुरूजी प्रार्थना हमारी सुन लीजे
कृपासिंधु करुणासिन्धु भक्ति साधना की हमें दीजे
भटक रहें हम भवभयसे क्लेश दुःख बहु सह रहे
साधनाहीन चंचल मनु भगवन भूल के रही है
कामक्रोधादी विकार तरंग अनन्त मन माही उठत है
शान्ति सागर नाम आपका लेत मन तरंग मिटत है
उपासना एक प्राणदेव की जो आपने सिखायी है
मन न हो विचलित उससे प्रार्थना एक बस यही है
'साधना' बिनु एकहि दिनु जीवन में हमारे न रही है
साधनामय तन मन जीवन गुरुचरण लीन रहि है
"हे सद्गुरुदेव! यह चैतन्यपुजा जो आपकी कृपा और आशीर्वाद से आरम्भ हुई है यही हमारा जीवन बनें।
हमारे जीवन एक भी दिन साधना बिना न बीते।
हम 'साधक' हैं और हम हमेशा साधक की मर्यादा में ही रहें। सद्गुरू तो केवल आप ही है। जो ज्ञान और भक्ति आपने दी है वह साधा अहंकार रहित रहें। हमें अहंकार और श्रेष्ठत्व के मद से सदा बचाइए।
विनम्रता का अलंकार हमें सदैव सौन्दर्य प्रदान करें।
हमारा मन एक क्षण भी अनीती, अधर्म, अन्याय, अत्याचार और कुमार्ग के पथ पे न चलें।
मन ही शुद्ध होगा तो कर्म भी शुद्ध होंगे। इसलिए हमारा मन साधा सदाचार - धर्म - भक्ति में ही लीन रहें।
अधर्म और राष्ट्र शत्रुओंसे लाधने की शक्ति आप हमें प्रदान करें। कायरता के कारण राष्ट्र - शत्रुओंसे 'शान्ति के लिए' शरणागति लेने का महापाप हमसे कभी न होवे, न ही ऐसा भ्रम हमारी बुद्धि में उत्पन्न होवे।
जगद्गुरू भगवान श्रीकृष्ण रूप में आपने जो निष्काम कर्मयोग सिखायाहाई, उसीमें हमारा जीवन सहज व्यतीत हो, यह आपकीही केवल आपकीही कृपासे सहज संभव है।
अध्यात्म का महानतम योग महायोग - शक्तिपात योग की जो कृपा दीक्षा आपने हमें दी है, उस साधना का विश्व शान्ति के लिए प्रचार - प्रसार, सदैव साधक भावसे साधनासहित चलता रहे इसलिए आप हमारे ह्रदय में विराजमान हो हमसे हमारा कर्त्तव्य पूर्ण करवा लीजिये...
आपकी कृपासे चैतन्यपुजा ही हमारा जीवन बनें..और जीवन ही चैतन्यपुजा बनें..."
इस पूजा में मेरा साथ हमेशा जिसने दिया है वह मेरी प्रिय सखी आरतीजी हैं, जो हमें ब्लॉग 'माय यात्रा डायरी' के माध्यम से तीर्थयात्रा करने का सौभाग्य प्रदान करतीं हैं। हर कविता को वह केवल पढ़तीं ही नहीं लेकिन हृदयसे इस चैतन्य पुजा में अपने भाव - पुष्प भी लातीं हैं..उनकी प्रेरणा के बिना अविरत लेखन करना असंभव लगता है। मैं आभार प्रदर्शित करके उनकी भावनाओं को केवल औपचारिक रूप नहीं दूँगी..पर हाँ आरतीजी! आपसे यह आग्रह अवश्य है, हमेशा हमें प्ररित करते रहिएगा...:-)।
ट्विटर पर: @Chaitanyapuja_
मोहिनीजी, ढेरो बधाईयां! आपकी यह प्रार्थना ज़रूर सफल होगी क्यूंकि सच्चे मॅन से कही गयी बातें भगवान हमेशा पूरी करते हैं। मुझे आपकी प्रार्थना गान मैं एक छोटी सी जगह देने के लिये अनेको धन्यवाद, यह मेरा सौभाग्य है की मुझे आपकी पूजा मैं शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ है। मैं भगवान से दुआ करती हूँ की वह हमे यह पूजा यूँही करते रहने की प्रेरणा और शक्ति निरंतर प्रदान करते रहे। :)
जवाब देंहटाएंआपकी प्रेरणादायी भावपुष्प ऐसेही साथ बनी रहे...आरतीजी. :)
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