योगाग्नि

प्राणसाधना :

आज  का काव्य महायोग को समर्पित है इस अध्यात्म और योग पथ ने मेरा जीवन धन्य कर दिया है इससे बडा और आसान कोई अध्यात्म पथ नही हो सकता यह योगाग्नि, वह अग्नि नहीं जो हम देखतें हैं, यह वह अग्नि नहीं जो शरीर को भस्म करें यह साधना की अग्नि है योगसाधना - महायोगसाधना - प्राणयोग साधना की अग्नि है यह अंतरसे वासना मिटाए सारे कर्म, विकार जल जाते है कर्म और विकार इनका स्वरुप मन है और साधना से मन - प्राण में विलीन हो जाता है अपने ही श्वास उच्छ्वास को आते जाते देखना यह है प्राण की उपासना - यह है महायोग की साधना। मन को अपने श्वासों पे छोड़ देना ही है यह साधना। दीक्षा और कुण्डलिनी जाग्रति परम पूजनीय सदगुरुदेव की सिद्ध संकल्पशक्ति से होती है। और फिर साधना का आरम्भ होता है। सारे कर्म जलने के बाद अर्थात मन प्राण में विलीन होने के बाद जीवन समाप्त नहीं होता, परन्तु एक नया जीवन शुरू होता है अत्यंत कठिन लगनेवाला यह सारा ज्ञान और यह साधना - साधना की पूर्ति समाधी और समाधी के बाद भी एक भक्ति - मुक्त की साधना, एक भक्त की साधना यह सब गुरुकृपा से ही संभव है जो ज्ञान बड़ी बड़ी पुस्तकों में पढ़ा था, वह तो परोक्ष ज्ञान था, सच्चा
ज्ञाननेत्र तो गुरुकृपा से ही खुलता है फिर सारा जीवन सफल होता है, सारे कर्म पवित्र हो जाते हैं कर्म छूटते नहीं, और छोड़ने नहीं, कर्मों का बंधन मात्र छूट जाता है। सहज समाधी! कोई प्रयास नहीं! पूर्ण आनंद पूर्ण जीवन भय रहित तृष्णा रहित शांत ...कामना रहित ऐसा यह योगाग्नि है 

दीक्षा के लिए किन्ही कठिनायीनों से अगर मन तैयार न हो तो महायोग का पूर्वाभ्यास सबके लिए है। 

इस पूर्वाभ्यास का सन्देश परम पूजनीय श्री गुरुमहाराज नारायणकाका महाराज के ही आशीर्वचनों में :



योगाभ्यास में हठ, मन्त्र, लय, राज इन चारों योगों का महायोग में (सिद्धयोगमें) अंतर्भाव होता है। ऐसे महायोगके (सिद्धयोगके) अभ्यास का प्रचार आभाल वृद्धों को जानकारी के लिए किया जा रहा है ।।


अभी पूर्वाभ्यास की नयी अभिनव योजना  

मानव जाती के कल्याणार्थ रखते है|

यह पूर्वाभ्यास कोई भी व्यक्ती धर्म, जात, वर्ण, लिंग, इत्यादी भेदों को हटाकर अपना सकता है । यह मार्ग अत्यंत सरल, सुलभ और विनामुल्य है। 

इस  पूर्वाभ्यास में 



  1. प्रथम शांतचित्त से आँखे बंद कर दीजिये ।।
  2. मैं शरीर नहीं हूँ । मेरा असली स्वरूप तो प्राण - चैतन्य (आने जाने वाला श्वास ) मात्र ही परमात्मा है । प्राण स्वरुप परमात्मा की पूजा करना हर एक व्यक्तीका कर्तव्य है । शरीर अत्यंत ढीला छोड़ना । आपने आप होनेवाले प्राण संचारको पूर्ण स्वातंत्र्य देकर मनको श्वास के संचार पर छोड़ देना। इस प्रकार प्रतिदिन 3 से 18 मिनिट - यह पूर्वाभ्यास करनेसे बहुत लाभ होगा। 
  3. इस पुर्वभ्यास्से बाध्य अनिष्ट वातावरण, दुर्विचार, व्यसनाधीनता इत्यादी दोष धीमे धीमे नष्ट होना जरूर प्रारंभ होगा। 
  4. यह पूर्वाभ्यास से सब दोष निकलते निकलते शक्तिपात दीक्षा की तैयारी होगी और जीवन के पूर्ण कल्याण के मार्गपर प्रगति होती रहेगी। 

।। कल्याणमस्तु ।।

सबका कल्याणेच्छु,

ना. य. ढेकणे 


नामसाधना : दैनंदिन कार्य करते हुए जब प्राणसाधना नहीं  कर सकते तब ईश्वर का नामस्मरण सहज है, सुखद है और अति प्रिय है प. पु. गुरुदेव श्री नारायणकाका ढेकणे महाराज कहतें हैं, की नामसाधना और प्राणसाधना एक ही है इस तरह से नामाग्नी भी योगाग्नि ही है

योगाग्नि -नामसाधना का सहज और सुन्दर वर्णन इस काव्य में महायोग की अधिक जानकारी कृपया यहाँ देखें -महायोग और विश्वबंधुत्व दिवस जो की २९ जनवरी को है, उसकी जानकारी यहाँ अवश्य देखें - Mahayoga Global Trial for Everybody

मेरे प. पु. गुरुदेव - जिन्होंने इस महानतम साधन से मुझे दीक्षित किया|

तनसे जला, मन से जला
हर विकार अग्नि से जला
अग्नि यह योग की
औषधि परम भवरोग की
भोग का दावानल प्रचंड
महायोग का अनल प्रचंड
भस्म हो गयी वासना
योगाग्नि से कर कामना
शांत शीतल नाम से
अग्नि यह परम शीतल
जो जलाए वासना अनल
नाम – रूप – शब्द - स्पर्श
गंध – रस – भव – भयंकर
सबसे परे यह योग है
शाश्वत समाधी
गुरुकृपा से सहज है
तन- मन – माया भेद अनंत
अद्वैत – समाधी आज सहज है
आज काल मिटा त्रिकाल
भव – भयंकर मिटा अकाल
तृष्णा अनंत भीषण प्रयत्न
सब छूट गया
अनायास अयत्न
अध्यात्म नहीं कठिन दुर्गम
मोह विकार नहीं अति कठिन
सब है एक केवल भ्रम
ईश्वर सत्य केवल एक नाम   


जागतिक महायोग संमेलन जिज्ञासू और साधक सबके लिए आयोजित हो रहा है कृपया अधिक जानकारी यहाँ देखें - Mahayoga Global Meet

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