विरहवेदना

'कुछ अच्छा लगता है' यह अभी अधुरा है....परन्तु मन के भाव बदलते रहते है...आज का काव्य कुछ और भाव का है | सीताजी जब अशोकवनमें थी...प्रभु श्रीराम से दूर हर क्षण विरह वेदना से पीड़ित| उनके मन की अवस्था कैसी होगी| अनेको बार रामायण की कथा पढ़ी सुनी है हम सबने | पर एक एक प्रसंग पर गहराई से मनन चिंतन हो तो लगता है ....माँ सीताजी की अवस्था कैसी होगी ......राम के बिना |
राम जो सबको आनंद देतें हैं | वह तो सीता के प्राणाधार है | उनके बिना वह रह रही हैं, राक्षसियों  के बीच! वह अपना दुःख किसे बताएगी| राम तो सर्वसमर्थ हैं, तो वह मुझे लेने क्यों नहीं आ रहे| क्या वह मुझे भूल गए? यह दुःख मेरा जीवन समाप्त क्यों नहीं कर रहा? क्या होगा मेरा अंत? क्या मैं जीवन में कभी मेरे जीवन को , मेरे प्रानोंके प्राण को मेरे राम को फिरसे देख पाऊँगी | उनकी वह आवाज.....क्या मै फिरसे सुनूंगी?

थक जाती हूँ कभी कभी 
उदास इन आखोंसे 
ह्रदय भर जाता है 
अनकहे आसुओंसे        
लगता है आज कह ही दूँ 
हाँ रोनेवाली मै ही हूँ 
अब नहीं सहा जाता 
आसुओंका भार यह 
उदास मुस्कान का 
दर्दभरा एहसास यह 
बस फिरसे मिलूं मेरे रामको 
जीवन जो मेरा उस श्यामको 
नहीं नहीं यह विरह नहीं 
सहा जाता यह दर्द नहीं 
क्यों छोड़ा तुमने मुझे 
या भूल बैठी मै ही तुझे 
बस फिरसे मिलन हो जाए 
ह्रदय में प्रेम राम का भर जाये
राघव अब विलम्ब न करो 
मुझे लेने जल्दी आओ
फिर नहीं अलग होना 
मुझे नहीं अब रोना 
प्यास उस मधुर मिलनकी 
वेदना हरक्षण है मन की 
विरह का कब अंत होगा 
कब प्रभु का दर्शन होगा 
कहाँ घिरी मैं असुरोंसे 
रामके बिना विरहानलमें
हे विरहानल! जला दे मुझको 
राम के बिन मिटा दे इस जीवनको 
प्राणाधार मेरे राम कहाँ गए 
तुम बिन प्राण क्यों छुट नहीं गए 
दर्शन की आस शीतल जल है 
मिलन की प्यास विरहानल है 
कहा न जाये कुछ अब मुझसे 
विरह वेदना छुपी नहीं तुमसे 
कब तुम्हारा स्पर्ष होगा 
इन आसुओंका अंत होगा
कब ह्रदय का भार मिटेगा  
कब मिलन का गीत उठेगा
क्या तुम ह्रदय की आवाज नहीं सुनते 
क्या तुम भी बिछड़ के यूँ नहीं जलते ......

यह काव्य और भाव कभी पूर्ण नहीं हो सकता | यह प्रारम्भ में मेरे जीवन से दु:खी  मन से उठनेवाले भाव थे, परन्तु लिखते लिखते सीताजी के भाव अभिव्यक्त हो गए | महर्षि वाल्मीकि, भगवान व्यास और गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामायण रूपी अनंत महाकाव्य को वर्णित किया है | उनके सामने इस सामान्य व्यक्तीने कुछ लिखने का प्रयत्न करना घोर दुस्साहस है, परन्तु "मूकं करोति वाचालं.." ऐसे साक्षात् माधवकी  और ज्ञानचक्षु खोलनेवाले सद्गुरुकी कृपा हो गयी तो फिर तो कहना ही क्या.....!
बस फिर ............
बोल उमड़े हृदयसे 
बनके पूजा फूल मनसे    








टिप्पणियाँ

  1. will say liked it... truly say....i liked the most the initial part..later i started losing my focus...that's my opinion...

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  2. Wah.. Mohini Wah... Kafi accha.. Dil ko choo gayi... Lage raho :)

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  3. @कविजी(शायद आपका नाम वीर है) पहले तो क्षमा चाहती हुं, काफी समय बाद उत्तर दे रही हुं|मेरा नेट संपर्क बहुत हि परेशान कर रहा था! आशा है आप ने बुरा नही माना होगा! आपका इस पूजा मे हार्दिक स्वागत है! आपकी टिप्पणी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद! मन की अवस्था सदा हि चंचल होती है, इसलिये बादमे आपका ध्यान बट गया होंगा! मुझे तो प्रसन्नता हि है, आप यहाँ आये और इस पूजा मे सहभागी हुये|

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  4. प्रमोदजी! नमस्ते! क्या कहूँ ,मन की अवस्था हृदयने लिख दि, बस! आपकी हृदयसे निकली इस टिप्पणी को क्या कहूँ, धन्यवाद लिखना गलत लगता है|

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  5. गीताजी चैतन्यपूजा मे आपका हार्दिक स्वागत! आपका तो नाम हि गीता है! कितनी अच्छी टिप्पणी लिखती हो| हमेशा लिखा करो |इस पूजा का अनुसरण करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद|

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  6. आरती बहुत बहुत धन्यवाद! बहुत दिनो बाद यहाँ आये आप| हम आपके शब्दापुश्पोका इंतजार करते है|

    प्रमोदजी ,गीताजी और आरती जी आपकी वोट पुष्पोके के लिये भी धन्यवाद, हृदयसे|

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  7. @कविजी(शायद आपका नाम वीर है) पहले तो क्षमा चाहती हुं, काफी समय बाद उत्तर दे रही हुं|मेरा नेट संपर्क बहुत हि परेशान कर रहा था! आशा है आप ने बुरा नही माना होगा! आपका इस पूजा मे हार्दिक स्वागत है! आपकी टिप्पणी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद! मन की अवस्था सदा हि चंचल होती है, इसलिये बादमे आपका ध्यान बट गया होंगा! मुझे तो प्रसन्नता हि है, आप यहाँ आये और इस पूजा मे सहभागी हुये|

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चैतन्यपूजा मे आपके सुंदर और पवित्र शब्दपुष्प.