कल बीमार थी | अत: कल कुछ प्रस्तुत न कर सकी | आपकी क्षमा चाहती हूँ |
इससे नहीं कुछ और नया
जीवन का आस्वाद नया
प्रसाद यह गुरूजी का नया
पूजा नयी, आविष्कार नया
सनातन यह माध्यम नया
आशा नयी, विचार नया
मेरा यह सहचर नया
पत्थर नया, फूल नया
भ्रमर वही उलझा नया
आकाश नया, भूमि नयी
मिलन क्षितिजसे रोज नया
नित्य यह काव्य नया
प्रेमका यह झरना नया
साज नया, आवाज नया
गानेका अंदाज नया
राज पुराना आज नया
सबको बताना काम नया
सही क्या है, गलत क्या है
उपजा यह विवेक नया
सही क्या है, गलत क्या है
उपजा यह विवेक नया
भाव:
मिलन क्षितिज से रोज नया: जैसे धरती और अम्बर का मिलन क्षितिज पे सदा होता है, वैसेही जीवात्मा और परमात्मा का यह मिलन हरदिन, हरपल.
माध्यम नया : ब्लागिंग का!
काव्य कुछ नया सा
काव्य कुछ नया सा - २
मिलन क्षितिज से रोज नया: जैसे धरती और अम्बर का मिलन क्षितिज पे सदा होता है, वैसेही जीवात्मा और परमात्मा का यह मिलन हरदिन, हरपल.
माध्यम नया : ब्लागिंग का!
आगे है कुछ नया
इस काव्य के पूर्व भाव : काव्य कुछ नया सा
काव्य कुछ नया सा - २
Aha! Nice one there, Mohini. :) Really liked it.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मानव!
जवाब देंहटाएंMughe accha laga...
जवाब देंहटाएंLikhte raho:)
धन्यवाद आरती!
जवाब देंहटाएंumdaa abhivyakti.
जवाब देंहटाएंand a blog in hindi, very tough thing.
great.
प्रमोदजी धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबस ऐसेही मन मे आता है! अछे और सच्चे विचारों के लिये ही मै अपने आपको मोहिनी मानती हू| मन की सुंदरता ही मुझे सुंदरता का रहस्य लगता है|
प्रमोदजी धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबस ऐसेही मन मे आता है! अछे और सच्चे विचारों के लिये ही मै अपने आपको मोहिनी मानती हू| मन की सुंदरता ही मुझे सुंदरता का रहस्य लगता है|