प्रभु श्रीरामनाम का स्तोत्र
श्वास तुम, ध्यास तुम
ध्येय तुम, ध्यान तुम
कर्म तुम, कार्य तुम
कर्म तुम, कार्य तुम
कर्मकर्ता, कार्यरक्षक तुम
जगदात्मा, जगत्कारण तुम
एक अखण्ड, अविनाशी
आनंदनिधान
प्रभु श्रीराम तुम।
जगत्पालक, जगदोद्धारक
प्रभु श्रीराम तुम।
ममस्वामी, मन:स्वामी
बुद्धिप्रेरक, विवेकदायक
आनंदनिधान
प्रभु श्रीराम तुम।
जगत्पालक, जगदोद्धारक
प्रभु श्रीराम तुम।
ममस्वामी, मन:स्वामी
बुद्धिप्रेरक, विवेकदायक
प्रभु श्रीराम तुम
प्रभु श्रीराम तुम।
सकलदुःखविराम तुम ।
सकलसुखदायक,
मनःआराम तुम
प्रभु श्रीराम तुम।
श्वास तुम, ध्यास
तुम
ध्येय तुम, ध्यान
तुम
ध्येय अर्थात ध्यान का विषय ध्यान करनेवाला 'मैं', ध्येय विषय राम और उनका ही ध्यान। राम में मन का लय होनेपर रहता है केवल राम । ध्यान करनेवाले 'मैं' का बोध जिस मनके कारण होता है, वो मनही जब श्रीराम में लीन हो जाता है तब सब कुछ राम ही रहता है। राम साकार है या निराकार, ब्रह्म है या अवतार, इन प्रश्नों से परे राम पूर्ण तत्त्व है; उनका ध्यान उनके नामामृत के साथ ही होता रहता है। सहज ध्यान परमानन्द की अनुभूति लाता है। ध्यान गुरुकृपासे, नामामृतसे सहज ही होता है।
This hymn in other languages from our sister sites:
- Jivanmukti (Sanskrit): त्वं श्वासाः, त्वं ध्यासः
- Vicharyadnya (Marathi): श्वास तू, ध्यास तू
चैतन्यपूजा में प्रभु श्रीराम की स्तुति और प्रार्थना: