भाजप पराजय के बीज

भाजप के ऐतिहासिक दिल्ली पराजय पर चर्चा और विश्लेषण आ रहें हैं | सतही तौर पर हम इस पराभव के कारण दिल्ली में ढूंढेन्गे | मेरा इस विश्लेषण से प्रयास, पराभव के बीज खोजना है | बीज सूक्ष्म होतें हैं और ऊपर से नजर नहीं आतें हैं इसलिए थोडा गहराई से कुछ अनदेखें मुद्दों की ओर इस आलेख में देखतें हैं |


प्रधानमंत्री की राज्य चुनावों में रैलीयां:

 

प्रधानमंत्री स्वयं अगर छोटे छोटे राज्य के चुनाव प्रचार में उतरे तो प्रधानमंत्री पद की गरिमा भी नीचे उतर जाती है और ऐसे प्रयास स्वयं प्रधानमंत्री की प्रतिमा ‘हताश – विफल’ के रूप में प्रस्तुत करतें हैं, प्रधानमंत्री को अपने निर्णयों के प्रति आत्मविश्वास विहीन दिखातें हैं| आपका काम आपका प्रचार ही करता है, फिर भी अगर खुद प्रचार के मैदान में उतारकर रैली करने की जरूरत आपको लगती है तो इसका अर्थ क्या है? इस बात की तरफ किसी ने शायद ध्यान देना जरूरी नहीं समझा होगा |  

पांच महत्वपूर्ण मुद्दे:


१. इस पराजय की शुरुवात बिहार में हुए उपचुनाव से ही शुरू हो गयी थी | इतनी बड़ी जीत के बाद इतने कम समय में हार कैसे आयी यह सोचने के बजाय तर्क यह दिया गया की कोई बड़े नेता प्रचार में नहीं थे इसलिए हार हुई |


२. महाराष्ट्र में मोदी ने जितने चुनावी क्षेत्रों में रैलियां की थी, उनमें से लगभग आधी जगहों पर भाजप का पराभव हुआ था | यह मोदी लहर समाप्त होने की शुरुवात थी | आत्ममंथन यहीसे  शुरू होना आवश्यक था | पर चापलूस यह बात मानने को तैयार ही नहीं थे | जिस नेता के आसपास चाटुकारों की झूठी तारीफ करनेवालों की सेना हो उसे शत्रुओं की आवश्यकता नहीं, यह बात फिरसे एक बार साबित हो गई|

चुनाव परिणामों के बाद राष्ट्रवादी से हाथ मिलाना भाजप और कांग्रेस के अंतर को मिटाता गया |

३. अब दिल्ली में इतनी ऐतिहासिक हार के बाद भी आत्मपरीक्षण करने के बजाय ‘यह पराजय २०१९ के लिए अच्छा है’, इस तरह की बातें सुनने में आ रही है | भाजप के प्रेम के कारण भाजप समर्थक यह बात लिख भी रहें हो तो समझ सकतें हैं लेकिन भाजप और संघ के लोग ‘ऐसे’ दृष्टिकोण से विश्लेषण करेंगे तो फिर ... यह सोचनेवाली बात है| जनता ने लोकसभा में इतना भारी बहुमत दिया है तो अब इसके बाद ‘हमारे साथ तो हमेशा अन्याय ही हुआ है’ यह बात भी तो नहीं कही जा सकती थी |

४. लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के बारे में लोगों का गुस्सा उबालने में भाजपा यशस्वी हुई थी | १० साल के शासन के विरुद्ध गुस्सा आना भी संभव था | लेकिन भाजप की जीत के बाद कांग्रेस को अपमानित करना, भाजप समर्थकों द्वारा नेहरु गांधी परिवार का, राहुल गांधी का बार बार मजाक उडाना यह भाजप के द्वारा बहुत ख़राब शुरुवात भारतीय राजनीती में दिखाई दी | आम आदमी पार्टी की गलतियों के बाद लोगों ने लोकसभा चुनाव में ‘आप’ को पूरी तरह से नकारा | उसके बाद आम आदमी पार्टी का, केजरीवाल का मजाक उड़ाना, बार बार अपमान करना यह एक और अनुचित बात भाजप ने की|

५. आख़री मुद्दा हिंदुत्व का जो मुझे सबसे महत्त्वपूर्ण लगता है|

हिन्दू हित की बात करने से किसी को कोई आपत्ती नहीं होती लेकिन 
  • सत्ता में आने के बाद अन्य संगठनों के द्वारा नफरत फैलाना!
  • असहिष्णुता
  • अभद्र भाषा का प्रयोग ( जो भी भाजप का विरोध करे उसके लिए)
  • हिन्दू हित के लिए वास्तव में कुछ करने के बजाय सिर्फ बोलने के लिए हिंदुत्व बोलना
  • कहीं धर्मनिरपेक्ष चेहरा दिखाने की कोशिश तो कहीं कट्टर हिन्दुत्ववादी! 

अगर विचारधारा में इमानदारी न हो तो लोग यह बात देखतें हैं और समझतें भी हैं!

अब स्वयंघोषित हिंदुत्ववादियों ने यह बात सोचनी चाहिए,

१.हिन्दुओं को अपनी प्रॉपर्टी मत समझिये | हिन्दू इन्सान हैं | हिन्दू मतदाता हैं | किसी के बहकावे में नहीं आ सकते |

२.हिन्दू असहिष्णु नहीं है अगर आपके भड़काने से सारे हिन्दूओं को असहिष्णु समझा जाने लगा तो हिन्दू आपको नकार सकतें हैं|

PS: पिछले दो तीन वर्षों में मैंने राजनीती को और हिंदुत्व को बहुत करीब से समझने की कोशिश की | सावरकर जी के हिंदुत्व और संघ के हिंदुत्व में अंतर ही उसे भी समझने की कोशिश की| और ‘अब’ मेरे मन में किसी राजनैतिक पक्ष के लिए विश्वास नहीं है, इसलिए किसी भी पूर्वग्रह से इस आलेख को कृपया मत देखिए |