एक
अनजान रास्ता जो कहाँ जाएगा ये पता नहीं, मंझील का विचार मन में नहीं,
दोनों
तरफ लहलहाते खेत,
खेतों के बाहर छोटे
छोटे हँसते मुस्कुराते फूल जिनका शायद कोई नाम नहीं..
और सर पे दूर दूर तक केवल खुला आसमान...
सपना
सा लगता है न?
और फिर ह्रदय ने गाया यह गीत...
आज
मैंने क्षितिज छू लिया
ऐ
क्षितिज! अब तुने दूर जाना जो छोड़ दिया
यह
नीला आसमान
आज
नीचे उतर आया
दौड़ते
दौड़ते लक्ष्य की ओर
लक्ष्य
खुद मेरे पास आ गया
जो
था सपना मेरा
आज
जमीन पर उतर आया
आशा
निराशा से परे,
यश
अपयश से परे
आनंद
से जीवन आज भर गया
स्तिमित
हूँ मैं आज
कैसा
है यह अनुभव
जो
नीला आसमान मुझमें समा गया
कैसा
है यह सुख
सारी
भावनाओं से परे
जिसे
कोई मिटा नहीं सकता
यह
कैसा है सुकून
जहाँ
द्वैत मिटता गया
यह
हलचल है कैसी ह्रदय में
जो
परम शांति के साथ ही खिल गयी
कैसा
है यह प्रेम का आनंद
जो
मुस्कुराती आँखोंसे बहने लगा
न
कोई भय, न कोई चिंता
खुशियों
के सागर में
विषाद
को डूबते देखा
न
कोई भूतकाल है, न है भविष्य
वर्तमान
के आनंद में
तीनों
कालों को एक होते देखा
न
समय की मर्यादा
न
निंदा, न प्रशंसा की चिंता
अपने
स्वरूप में ही अपने
अहम्
को खोते देखा
समाधिस्थ
योगी के हृदयानंद को,
ध्यान
में हुए मनोलय को
खुली
आँखों से,
इस
अनजान राह पर चलते चलते
ह्रदय
से उमड़ते आनंद में देखा
आज
मैंने भगवान को देखा
अनजान
क्षितिज को
ह्रदय
में बसते देखा
भगवान
न बंधा है केवल मूर्ति में
साकार
निराकार, सगुण निर्गुण के विवादों में
न
मत पंथों में,
न
राग द्वेष की कल्पनाओं में
वह
है खुले आकाश में,
लेकिन
है आकाश से भी परे
वह
है बहती सरिता में,
और
सरिता के प्रवाह से भी परे
वह
है सितारों में
पर
सितारों से भी परे
हर
क्षण, हर स्थिती में
हृदय
से बहते प्रेम प्रवाह में
क्या
है द्वैत और अद्वैत क्या है
सब
कुछ मिट गया
प्रेम
के बहते प्रवाह में
ज्ञान
क्या है, अज्ञान क्या है
क्या
है तत्त्व और योग क्या है
प्रेम
के उमड़ते सैलाब से भी परे
क्या
कोई भगवान रहता है...?
वह
नीला आसमान
या
वंशीधर कृष्ण
प्रेम
ही प्रेम है जब
मिथ्या
माया का वह भ्रम
प्रेम
में ही बुझते देखा
बस
एक तृप्ती
कोई
चाह न बची...
चारों
और फ़ैली शांती में
आनंद
के सागर में डूबते डूबते
मुझेही
आनंद बनते देखा...
चैतन्यपूजा में अनंत को छूती अन्य कविताएं:
सोच रही हूँ... क्या लिखूं... पर शब्द काम पद रहे हैं आपकी कविता की तारीफ मैं... इतनी भावपूर्णा, इतनी मधुर, इतनी आनंदमयी, आध्यात्म के सागर मैं गोते लगाती हुई, क्षितिज की तरह विशाल, प्रेम सी गहरी -- पढ़ के मानो, आपके आसमान से हमने जैसे एक सितारा छू लिया ...
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