आज की
प्रस्तुती भगवान कृष्ण
के प्रेम के
कारण है | सारे दुःख
और मोह का
कारण होता है
मन, परन्तु भगवान कृष्ण
का प्रेम उस
मन को ऐसे
मोहित कर देता
है की उस
प्रेम में सबकुछ
अर्पित हो जाता
है, जब सब
कुछ कृष्णमय हो जाता
है, तो हृदयसे बहती है
कृष्णप्रेमधारा
.....
कृष्णप्रेमधारा
कृष्णप्रेम में बह चली आसुओं की धारा
आज न
मन संभला जाता
आज न
दिल संभला जाता
कृष्णप्रेम में
बह चली आसुओं
की धारा
आज न
मन संभला जाता
आज न
दिल संभला जाता
प्यार में
उसके ऐसे मगन
हुई मैं
आज न
मन संभला जाता
आज न
दिल संभला जाता
टूट के
आज खो गई
उसमें
मैं न
रही जल गयी
प्रेम में
आज न
दिल संभला जाता
आज न
मन संभला जाता
कृष्णप्रेम में बह
चली आसुओं की
धारा
आज फिर
चंचल मन यह
हारा
आज फिर
प्रेमासुओं का सहारा
कृष्णप्रेम बह चली
आसुओं की धारा
आज न
मन संभला जाता
आज न
दिल संभला जाता
आँसू आँसू
भिखर बिखर
प्रेमगीत गाने लगे
आँसू आँसू
बिखर बिखर
कृष्णप्रेम बुलाते रहे
नयन भर
गए प्रेम से
बह चली फिर
आज प्रेमधारा
आज न
मन संभला जाता
आज न
दिल संभला जाता
टूट गयी
उस प्यार में
जिसे गोपियों ने था
जाना
आज न
मन संभला जाता,
आज न
दिल संभला जाता
प्रेमपिआसे नयनसे आज
बह निकली
अमृत आँसू
धारा
आज कृष्ण
प्रेम में मन
फिर हारा
आज न
मन संभला जाता
आज न
दिल संभला जाता
आज न
बात कोई सूझे
आज न
काम कोई सूझे
कृष्णप्रेम में पागल
मन
जल गया
सारा अँधियारा
आज फिर
प्रेम में मन
मोरा हारा
मोहिनी मिट गयी
कृष्ण में
कृष्ण ने
नवजीवन आज दिया
आज कृष्णप्रेम
में मोह हारा
आज कृष्णप्रेम
में जग यह
हारा
आज कृष्णप्रेम
में बह चली
आंसुओं की धारा
आज न
मन संभाला जाता
आज न
दिल संभला जाता
ट्विटर पर: @Chaitanyapuja_
नमस्ते श्री. अरुण शर्मा जी| प्रथम तो इतनी देरी से उत्तर देने के लिए और आपकी टिप्पणी प्रसिद्ध होने में देरी होने के कारण क्षमाप्रार्थी हूँ | हमारे काव्य स्पंदन को ब्लॉग प्रसारण में प्रसारित होते देख आपने हमें सम्मानित किया है| आपका बहुत बहुत आभार |
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