होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं ! मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रतिमा धुले के बी. ए. पी. एस. स्वामीनारायण मंदिर में विराजमान श्री घनश्याम महाराज की है। श्री स्वामीनारायण भगवान का यह बाल - रूप है । मुझे अधिक तो पता नहीं, परन्तु मेरे लिए यह मेरे कान्हाजी हैं।
कुछ लिखने आज चली थी
कान्हा ने भी बात कर ली
देखिये क्या है यह बात
होली में राधा कृष्ण का साथ
श्री घनश्याम महाराज
होली खेली आज कान्हा संग
मन रंग दिया मेरा भक्ति के रंग
होली ऐसी यह अनुपम है
आत्मा - परमात्मा का मिलन है
होली श्याम से ऐसी खेली
जीवन की हर ख़ुशी आज मुझे मिली
वासना का रंग न है
यह तो कृष्ण प्रेम है
गोपियोंको जिसने पागल बनाया
उसीने आज भक्तिका रंग लगाया
ऐसी होली कभी न खेली
प्रेम रंग में भर भर मेली
रसिया तुने पागल कर दिया
होली खेल के जीवन रंग दिया
तेरा प्रेम पाने जनम जनम तडपी
आज तुने अपनाके प्यास बुझाई
तेरा संग बस अब कभी न छूटे
चाहे यह प्राण क्यों न छूटे
तुझे पाना था लक्ष्य मेरा
पर तेरे प्रेम ने मुझे ही भुलाया
क्या करू मै इस जादू को
क्या कहू मै इस प्रेम को
जिसने दु:खोंको सारे जलाया
क्षण एक न चैन था मनको
तेरे मिलन ने शांत किया
वासना का रंग मिटाके
भक्ति में मुझे रंग दिया
तुझमे न था वह रंग
तू तो सदा है मेरे संग
तू ही है वह राधा
तू ही है वह सीता
प्रेम जिसने इस जग में
सदा सदा है फैलाया
सदा सदा है फैलाया
Mujhe tumhari kavitayein acchi lagti hain!!
जवाब देंहटाएंKrishna ki yeh kavita bahut acchi lagi, dil se likhi hai tumne:)
Holi ki shubkamnayein:)
आरती ! इस मीठे और सुंदर शब्द्पुष्प के लिये बहुत प्रसन्नता हुई | आपके शब्दपुष्प और सुंदर अभिव्यक्ती की प्रेरणा देते है | :)
जवाब देंहटाएंहोली की आपको बहुत बहुत शुभकामनाये | :)
जवाब देंहटाएंHappy Holi Mohini!what a lovely treat on Holi through the verse on Krishna- the supreme spirit- the epitome of love!
जवाब देंहटाएंअर्पणा जी ! आपको भी होली की ढेर सारी शुभकामनाये | आपके इस सुंदर भावपुष्प पे क्या कहूँ | आपको अच्छा लगा यह जानके अति प्रसन्नता हुई |
जवाब देंहटाएंbahut sunder n manbhawan
जवाब देंहटाएंमोही-नी, खूप छान,
जवाब देंहटाएंसुंदर.
तुझमे न था रंग, तू सदा मेरे संग.
सुंदर दर्शन.
मानसपूजा करतेस कि नाहीं माहित नाहीं, पण करत असावीस.
एकदा डोळे मिटून वाच ही अभंगिनी, कान्हीनी.
तुझ्या माझ्यासाठीच आहे म्हणा हे समजणे,
महाराजांनी सांगितले की हे सगळ्यांसाठी नाहीं, वाटत सुटू नका.
समजणार नाहीं, गम्मत होईल.
म्हणून शक्यतो टाळतो असे काही लिहिणे, पण राहवले नाहीं.
त्यांची कृपा आहे, ते घेतील सांभाळून.
द्वारकेला जाताना रस्त्यात एक जागा आहे
जिथे गोपिबरोबर कृष्णाने रासक्रीडा केली होती
जा तिथे कधी जमले तर.
एक गोष्ट लिहितो दर्शनासाठी:
रहीम मुसलमान थे, कृष्णभक्त थे, और अकबर के नौ रात्नोमेसे एक रत्न थे. पुरा नाम था अब्दुल रहिम खान खाना. उनकी एक विशेषता बहोत कम लोग जानते है के वे स्वभाव से महान दानी थे. बहोत से दानी हुये रहिम जैसे दानी नही हुवे.
विशेषता ये थी के जैसे जैसे वे दान करने के लिये अपने हाथ उठाते थे, अपनी आंखे झूका लेते थे. लोगोंको बडा आश्चर्य होता था, के ये कैसा दानी है - रहिम को तो दान करने मे शर्म आती है.
और ये बात फैलते फैलते गोस्वामी तुलसीदासजी तक गायी और उन्होने दो पंक्तीया लिख कर रहिम के पास भेजी, उसमे लिखा,
"ऐसी देनी देन क्यू,
कित सिखे हो सैन,
जो जो कर उंचे करे,
क्यू क्यू नीचे नैन."
रहीम ने पढा समझ गये, के गो गोस्वामीजी तो अंतर्यामी है, सब जानते है, शायद मुझसे कहलवाना चाहते है, तो दो पंक्तीया रहिमजी ने भी नीचे लिख दि.
''देनहार कोई और है,
भेजत जो दिन रैन,
लोग भरम हमपर करे,
तासो नीचे नैन,
तुलसी इस संसार मे,
सबसे मिलीये धाय,
न जाने कीस रूप मे,
नारायण मिल जाये."