आज मेरे सद्गुरुदेव परम पूजनीय श्री नारायणकाका महाराज जी के सद्गुरू , मेरे परम गुरु परमहंस परिव्राजकाचार्य १००८ श्री लोकनाथ तीर्थ स्वामी महाराज, जिनको की हम सब प्रेम से स्वामी महाराज बोलते हैं , उनकी पुण्यतिथि है। सिद्धयोग ( महायोग ) की चैतन्यगंगा इन्होने हि महाराष्ट्र मे लायी। जिसके कारण आज हम विश्वबन्धुता के प्रसार हेतु इस चैतन्यपुजा में जुड़े हैं।
माँ भगवती ने उनको आदेश दिया 'दक्षिण को चलो।' और वे इस मराठी देश में आये। मेरे गुरुदेव को जब वे अभियांत्रिकी महाविद्यालय में थे, तब स्वामी महाराज जी से दीक्षा प्राप्त हुई।
स्वामी महाराज जी का जीवन वास्तव में सन्यासी जीवन के नियमोसे परिपूर्ण था, जो की आज के समयमे दुर्लभ सा हो गया है। कोई पालन करना भी चाहे तो तो भी यह असंभव सा प्रतीत होता है। उनकी कठोर परन्तु उनके लिए सहज ऐसी साधना - तपस्या आज के समय में करना शायद ही संभव हो।
स्वामिमहाराज जी के बारेमे तो जितना लिखा जाए कम ही है। उनकी प्रतिमा देख के मन ऐसा शांत हो गया , की कुछ लिखा ही नहीं जा रहा है। तपस्या से - विशुद्ध जीवन से - साधना से जो चैतन्य प्रकट होता है , उसका अनुभव सदा रहता है , यही यह प्रतिमा देखके मन में आ रहा है। स्वामी महाराज हम सबके बीच ही है। आप भगवान को माने या न माने , पर स्वामी महाराज जी की यह प्रतिमा देख के एक अद्भुत शांति का अनुभव आपको अवश्य होगा।
इस प्रतिमा को प्रकाशित करने की अनुमति देनेके के लिए मै प.प. श्री लोकनाथ तीर्थ स्वामी महाराज महायोग ट्रस्ट (नाशिक)की मै ह्रदय से आभारी हूँ।
सिद्धयोग के इस सहज तम पथ पे सद्गुरु देव की सच्ची सेवा तो साधना में नियम से बैठना और सिद्धयोग का विश्व बंधुता का सन्देश प्राणिमात्र तक पहुँचाना बस यही है।
जीवन के भयंकर संघर्षमय पथ पे भी शांत सहज जीवन की प्राप्ति सिद्धयोग से ही मुझे हुई है।
विश्व बंधुत्व दिवस के विषय में आगे लिखती रहूंगी।
काव्य अति सहज और सरल है , इसलिए इसका अनुवाद नहीं लिख रही हूँ ।
प्रतिमा सौजन्य: http://mahayoga.org/
नमस्ते नमस्ते प्रभो लोकनाथ |
नमस्ते नमस्ते प्रभो विश्वनाथ ||
नमस्ते नमस्ते हे प्राणनाथ |
नमस्ते नमस्ते सदा एकनाथ ||
नमस्ते नमस्ते हे शक्तीनाथ |
नमस्ते नमस्ते हे जगन्नाथ ||
नमस्ते नमस्ते गुरो नारायण |
नमस्ते नमस्ते सदगुरो लोकनाथ ||
नमस्ते नमस्ते हे जगद्गुरो |
नमस्ते नमस्ते हे परम सदगुरो ||
पाहि पाहि हे प्रभो लोकनाथ |
पाहि पाहि हे विभो विश्वनाथ ||
आपको मेरे शब्द सुन्दर प्रतीत होते हैं, पर इसमें मेरा कर्तृत्व नहीं , मेरे गुरुदेवकी कृपा और उनका मेरे जीवन पे प्रभाव ही कारण है। इसलिए आप प्रशंसा करते हैं तो मुझे बहुत संकोच होता है।
सुंदर अतिसुंदर मन प्रसन्न हुआ|संस्कृत काव्य देखकर बहुत आनंद हुआ|
जवाब देंहटाएंईश्वर से प्रार्थना है की आपके द्वारा और भी रचनाये संस्कृत मे हो और आप यश के शिखर पर शिघ्रही पहुचे|
excellent!
जवाब देंहटाएंअर्पणाजी ! चैतन्यपूजा मे आपका हार्दिक स्वागत.विलंब के लिये अत्याधिक क्षमाप्रर्थी हू! आपके इस सुदर शब्दपुष्प के लिये हृदयसे नमन | प्रथम बार संस्कृत मे लिखा | आपका यह शब्दपुष्प मेरे लिये क्या है मै बात नही सकती | :)
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